क्या देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं? यही विचार "वन नेशन वन इलेक्शन" का है। इसका मकसद बार-बार होने वाले चुनावों की वजह से खर्च, प्रशासनिक दिक्कतें और नीतिगत रुकावटें कम करना है। सुनने में आसान लगता है, पर असल में इसके कई व्यावहारिक और संवैधानिक सवाल जुड़े हैं।
सबसे बड़ा फायदा होगा समय और पैसा बचना। चुनाव कराने में लाखों रुपये और प्रशासनिक संसाधन लगते हैं — पुलिस, कर्मचारी, मशीनें। एक साथ होने पर ये खर्च घटेंगे। दूसरी बात, बार-बार चुनावों की वजह से सरकारें अल्पकालिक नीतियाँ अपनाती हैं; एक साथ चुनाव से नीतिगत निरंतरता बन सकती है। वोटर थकान भी कम होगी और प्रशासनिक ध्यान विकास पर ज़्यादा केंद्रित रहेगा।
इसके अलावा, चुनावों का सालभर का माहौल मीडिया और सरकारी मशीनरी पर दबाव बनाता है। एक साथ चुनाव होने पर यह चक्र छोटा होगा और सरकारी कामकाज पर कम व्यवधान आएगा।
सबसे बड़ा सवाल है संवैधानिक बदलाव। भारत का संविधान विभिन्न राज्यों की विधानसभा और लोकसभा की अलग-अलग अवधि को मानता है। एक साथ चुनाव के लिए संविधान में संशोधन, संसदीय और राज्य स्तर पर सहमति और कई कानूनी बदलाव जरूरी होंगे। क्या राज्यों को यह मंजूर होगा — यही बड़ा राजनीतिक मुद्दा है।
फेरबदल की तकनीकी चुनौतियाँ भी हैं। कई राज्यों की सरकारें बीच में गिरती हैं या मध्यावधि चुनाव होते हैं — ऐसे मामलों में ट्रांज़िशन व्यवस्था चाहिए होगी: या तो भर्ती के समय सबको नई विधानसभाओं के हिसाब से सिंक करना होगा या कुछ अस्थायी कदम लेना होंगे, जैसे कुछ समुदायों के लिए विभिन्न नियम रखे जाएं।
लोकतांत्रिक बहस भी है: क्या एक साथ चुनाव छोटे राज्यों की आवाज़ को दबा देगा? क्या स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय एजेंडा में खो जाएंगे? विपक्षी दल और नागरिक समाज अक्सर यही चिंता जताते हैं। इसके अलावा चुनावी फ़ैसलों पर न्यायिक समीक्षा, चुनाव आयोग की भूमिका और राज्यों के अधिकार — सब पर नए नियम बनेंगे।
ठोस कदम क्या हो सकते हैं? पहली बात, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के कार्यकाल को समन्वयित करने वाली एक समयबद्ध योजना बनानी होगी। दूसरी, संविधान संशोधन प्रस्ताव ले कर राज्य विधानसभा की स्वीकृति और संसद की आवश्यक बहुमत हासिल करना होगा। तीसरी, चरणबद्ध लागूकरण — पहले कुछ राज्यों में पायलट और फिर पूरे देश में विस्तार — व्यवहारिक रास्ता दिखता है।
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18 सितंबर, 2024 को, मोदी कैबिनेट ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी दी। इससे राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चुनावों को एकसाथ आयोजित करने की संभावनाएँ बढ़ी हैं। यह बिल आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पहल के प्रबल समर्थक रहे हैं, जो चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाने और बार-बार चुनावों की आवृत्ति को कम करने का लक्ष्य रखती है।
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