मोदी कैबिनेट ने दी 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी
सित॰, 18 2024मोदी कैबिनेट ने दी 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी
18 सितंबर, 2024 को, मोदी कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए 'वन नेशन वन इलेक्शन' (एक देश, एक चुनाव) प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस फैसले से भारत में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चुनावों को एकसाथ आयोजित करने का मार्ग प्रशस्त होता है। यह निर्णय देश की चुनाव प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पहल के प्रबल समर्थक रहे हैं। उनका मानना है कि 'वन नेशन वन इलेक्शन' से चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है और बार-बार चुनावों की आवृत्ति को कम करके देश की वित्तीय और तार्किक व्यवस्थाओं पर पड़ने वाले बोझ को कम किया जा सकता है। इस बिल को आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में पेश करने का निर्णय लिया गया है।
क्या है 'वन नेशन वन इलेक्शन'?
'वन नेशन वन इलेक्शन' का अभिप्राय यह है कि देश के सभी राज्यों और केंद्र सरकार के चुनाव एकसाथ एक समय पर कराने का प्रस्ताव है। वर्तमान में, भारत में समय-समय पर विभिन्न राज्यों के विधान सभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग तिथियों पर होते हैं। इससे प्रशासनिक व्यवस्था पर बार-बार चुनाव कराने का भार बढ़ता है।
'वन नेशन वन इलेक्शन' का लक्ष्य है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय चुनाव एकसमय पर आयोजित किए जाएं जिससे चुनावी खर्च और प्रशासनिक जटिलताओं को कम किया जा सके। इस पहल का उद्देश्य केवल आर्थिक बचत ही नहीं, बल्कि चुनावी गतिविधियों के कारण राज्यों में होने वाले कामकाज के स्थगन और शासन पर पड़ने वाले प्रभाव को भी कम करना है।
इस पहल के समर्थक क्या कहते हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित इस पहल के समर्थकों का मानना है कि 'वन नेशन वन इलेक्शन' से देश की प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार होगा और सरकारी खर्चों में कटौती की जा सकेगी। उनका तर्क है कि बार-बार चुनाव कराने से सरकारी और निजी संसाधनों पर बड़ा दबाव पड़ता है। साथ ही, प्रशासनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है। यदि एक समय पर चुनाव होते हैं, तो शासन की मूल्यवान समय की बचत हो सकेगी और विकास कार्यों पर ध्यान अधिक केंद्रित रहेगा।
इसके अतिरिक्त, लगातार चुनाव प्रचार के कारण उत्पन्न होने वाले राजनीतिक अस्थिरता में भी कमी आने की संभावना जताई जा रही है। लगातार चुनावी माहौल के कारण अक्सर विकासात्मक कार्यों में अवरोध उत्पन्न होते हैं और सत्ताधारी पार्टियों का ध्यान बंटता है।
विपक्ष के तर्क क्या हैं?
हालांकि, 'वन नेशन वन इलेक्शन' के विरोध में भी कई महत्वपूर्ण तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं। विपक्षी दलों का मानना है कि इस पहल से राज्यस्तरीय राजनीति और स्थानीय मुद्दों पर असर पड़ेगा। राज्यस्तरीय चुनावों का महत्त्व राष्ट्रीय मुद्दों से अलग होता है और दोनों को एकसाथ जोड़ने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान हो सकता है।
इसके अलावा, तकनीकी और तार्किक चुनौतियाँ भी इस प्रस्ताव के सामने बड़ा मुद्दा हैं। एकसाथ चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में चुनाव अधिकारियों, सुरक्षा कर्मियों और चुनाव सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी। यह कार्य केवल आचार संहिता लागू करने की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि इसे सही समय पर और प्रभावशाली रूप से सम्पन्न कराने के लिए भी कठिनाईपूर्ण हो सकता है।
अति-महत्वपूर्ण सवाल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या 'वन नेशन वन इलेक्शन' भारत जैसे विविधता वाले देश में संभव है? भारत में विभिन्न राज्यों की राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थितियों में काफी अंतर है। ऐसे में इसे एकसाथ एक समय पर चुनाव कराने की पहल कितनी सफल हो पाएगी, यह एक महत्त्वपूर्ण चर्चा का विषय है।
फिलहाल, मोदी कैबिनेट के इस फैसले ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' के विषय को एक नई दिशा दी है और अब संसद में इस पर व्यापक बहस की संभावना है। इसपर विभिन्न पक्षों के अनेक तरह के विचार सामने आ रहे हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिरकार यह प्रस्ताव किस दिशा में आगे बढ़ता है।