31 अक्तूबर 1984 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या ने देश को झकझोर दिया। उनकी हत्या उनके ही दो अंगरक्षकों, बांत सिंह और सतवंत सिंह ने की थी। यह हमला नई दिल्ली के अपने आवास (सफदरजंग रोड) पर हुआ। घटना का तत्काल कारण ऑपरेशन ब्लू स्टार था — जून 1984 में स्वर्ण मंदिर में की गई सैन्य कार्रवाई, जिससे सिख समुदाय के कुछ हिस्सों में गहरा आक्रोश पैदा हुआ था।
सुबह जब इंदिरा गांधी अपने आवास के भीतर जा रही थीं, तभी उनके अंगरक्षकों ने उन पर गोलियां चलाईं। बांत सिंह मौके पर मारे गए, जबकि सतवंत सिंह बाद में अदालत में दोषी ठहराया गया और जानकारी के अनुसार 1989 में उनकी फाँसी हुई। हमले के तुरंत बाद सुरक्षा व्यवस्था, संसद और राजनीतिक हलकों में सख्त कदम उठाए गए।
ये बात समझनी जरूरी है कि हत्या अकेली घटना नहीं थी; यह उस समय के बड़े राजनीतिक और सामाजिक संक्रमण का हिस्सा थी। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद बढ़े तनाव और कट्टरता ने हालात और जटिल बना दिए थे।
हत्या के बाद देश में व्यापक पैमाने पर दंगे हुए, खासकर दिल्ली में सिख समुदाय पर हिंसा भड़क उठी। इन दंगों में कई लोग मारे गए और हजारों परिवार प्रभावित हुए — अलग-अलग रिपोर्टों में हताहतों की संख्या और कारणों पर मतभेद हैं। राजीव गांधी ने तुरंत प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और अगले दिनों राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल गया।
कानूनी रूप से सतवंत सिंह को सजा हुई और बाद में फाँसी दी गई। हत्या और उसके बाद की घटनाओं की अलग-अलग जांच और आयोग बने, जिनकी रिपोर्टों और प्रभावों पर बरसों तक बहस रही। सरकारों और अदालतों में लंबी कानूनी लड़ाइयां हुईं, साथ ही पीड़ितों के मुआवजे और न्याय के मुद्दे उठते रहे।
क्या यह केवल एक व्यक्तिगत हमला था? नहीं। यह घटना उस समय की बड़ी नीतिगत और सामाजिक चुनौतियों का संकेत थी — धार्मिक भावनाओं, सुरक्षा इंतज़ामों और राजनीतिक फैसलों के बीच टकराव ने गम्भीर नतीजे दिए।
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31 अक्टूबर, 1984 का दिन भारतीय इतिहास में एक काले दिन के रूप में दर्ज है, जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही दो सुरक्षाकर्मियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। इस घटना ने देश में सांप्रदायिक दंगे भड़का दिए थे। यह हत्या उनके द्वारा अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में आपरेशन ब्लू स्टार की योजना के बाद की गई, जिसने सिख समुदाय में गुस्से की लहर फैला दी थी।
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