जब बात आती है DRDO, भारत की सरकारी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, जो देश की स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकियों का डिज़ाइन और विकास करती है. इसे Defence Research and Development Organisation कहते हैं, और यह भारत की रक्षा क्षमता का आधार है। ये संगठन केवल बंदूकें या रॉकेट नहीं बनाता—यह ड्रोन, लेज़र हथियार, स्टील्थ तकनीक, और एंटी-मिसाइल सिस्टम जैसी भविष्य की तकनीकों पर काम करता है।
DRDO के तहत काम करने वाले वैज्ञानिक और इंजीनियर ऐसे प्रोजेक्ट्स बनाते हैं जिन्हें दुनिया भर में नहीं बनाया जा सकता। जैसे अग्नि-5, एक इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल जो 5,000 किमी से अधिक की दूरी तक पहुँच सकती है या प्रलय, एक टेक्स्टाइल-आधारित मिसाइल जो बहुत तेज़ और अत्यधिक सटीक है। ये हथियार भारत की सुरक्षा को नए आयाम देते हैं। DRDO ने अभी तक 300 से ज्यादा रक्षा प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं, और इनमें से ज्यादातर अब भारतीय सेना के इस्तेमाल में हैं।
क्या आप जानते हैं कि DRDO ने भारत की पहली स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस, एक हल्का बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान जो आज भारतीय वायु सेना का आधार है भी बनाया? यह विमान अमेरिका या रूस से नहीं, बल्कि भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत से बना। इसी तरह, प्रताप, एक अत्याधुनिक टैंक जिसकी रक्षा और हमला क्षमता दुनिया के शीर्ष टैंकों के बराबर है का विकास भी DRDO के अधीन हुआ। ये सिर्फ उपकरण नहीं, बल्कि देश की आत्मनिर्भरता के प्रतीक हैं।
DRDO के अलावा, इसके साथ काम करने वाले संस्थान जैसे अस्त्र, एक बहुत ही सटीक एयर-टू-एयर मिसाइल जिसे DRDO ने विकसित किया या अक्षि, एक रडार सिस्टम जो दुश्मन के विमानों को 200 किमी दूर से पहचानता है, भी देश की रक्षा को मजबूत बना रहे हैं। ये सभी तकनीकें भारत को विदेशी आयात पर निर्भर नहीं रहने देतीं।
DRDO के प्रोजेक्ट्स के बारे में आपको जो खबरें मिलती हैं—चाहे वो एक नई मिसाइल का परीक्षण हो या कोई नया ड्रोन जो दुश्मन के रडार से छिप जाता है—वो सिर्फ तकनीकी अपडेट नहीं, बल्कि देश की ताकत का प्रमाण हैं। यहाँ आपको ऐसी ही ताज़ा और विस्तृत खबरें मिलेंगी, जो आपको बताएँगी कि भारत कैसे अपने हाथों से अपनी सुरक्षा बना रहा है।
DRDO ने चंडीगढ़ में 800 किमी/घंटा की गति से लड़ाकू विमान बचाव प्रणाली का सफल परीक्षण किया, जिससे भारत विश्व के शीर्ष देशों में शामिल हो गया। यह आत्मनिर्भर रक्षा की एक बड़ी उपलब्धि है।
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