जब तमिलनाडु में कोई चुनाव होता है, तो एक नाम हमेशा सुनाई देता है — AIADMK, तमिलनाडु की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक पार्टी, जिसकी स्थापना 1972 में एम.जी.आर के नेतृत्व में हुई थी और जिसने राज्य की राजनीति को अपने हाथ में ले लिया। इसे अक्सर अडीएमके भी कहा जाता है, और यह पार्टी आज भी राज्य के राजनीतिक नक्शे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस पार्टी का नाम अल्लाइंस फॉर ड्राइवर्स और मेकेनिक्स का अक्षर संक्षेप है, लेकिन आज यह केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक आंदोलन है।
इस पार्टी की शक्ति का आधार एम.जी.आर के बाद आई जयललिता थीं। जयललिता, एक अभिनेत्री जिन्होंने राजनीति में अपना अद्वितीय स्थान बनाया और तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। भी कहा जाता है, वे बहुत कम लोगों ने जीता है। उन्होंने इस पार्टी को एक व्यक्तिगत भक्ति की शक्ति में बदल दिया। उनके बाद अखिलेश ने भी इस पार्टी को अपने हाथों में लिया, लेकिन जयललिता के बिना यह पार्टी अपनी पहचान खोने लगी। आज भी AIADMK के लोग जयललिता के नाम का इस्तेमाल करते हैं, उनकी तस्वीरें चुनावी पोस्टरों पर लगी रहती हैं, और उनके बयानों को राजनीतिक बुनियादी ढांचे के रूप में देखा जाता है।
AIADMK ने तमिलनाडु में एक अलग राजनीतिक संस्कृति बनाई है — जहां नेता का नाम ही वोट बन जाता है। यह पार्टी अपने आधार को गरीब, मजदूर और शहरी निवासियों से जोड़ती है। उनके स्कीम्स — जैसे निःशुल्क रसोई, राशन, बिजली और पानी — इस पार्टी के लिए विश्वास का आधार बन गए हैं। यह पार्टी अक्सर अपने विरोधियों को भी अपने तरीके से अपनाती है। जब भी कोई नया नेता उभरता है, तो AIADMK उसे अपने नाम से जोड़ने की कोशिश करती है।
यहां आपको AIADMK से जुड़े विभिन्न पहलुओं को देखने को मिलेगा — जैसे इसके नेतृत्व के बदलाव, चुनावी रणनीतियां, राज्य में इसकी नीतियों का असर, और इसके लोगों के बीच चल रहे विवाद। ये सभी खबरें आपको बताएंगी कि AIADMK आज केवल एक पार्टी नहीं, बल्कि तमिलनाडु की राजनीति का एक जीवित अंग है।
DMK ने 2021 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में AIADMK को हराकर 10 साल बाद सत्ता पर लौट आया। M K Stalin के नेतृत्व में गठबंधन ने 126 सीटें जीतीं, जबकि AIADMK केवल 66 पर रह गई।
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