प्रियंका गांधी का वायनाड से चुनाव लड़ने का ऐलान, भाजपा ने कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाया

प्रियंका गांधी वाड्रा के वायनाड से लोकसभा चुनाव लड़ने के फैसले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस ने इस कदम की घोषणा की है, जिसके बाद भाजपा ने पार्टी पर परिवारवाद का आरोप लगाया है। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस अपने राजनीतिक वंश को बचाना चाहती है और इसीलिए वाड्रा को मैदान में उतारकर परिवारवाद की राजनीति कर रही है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे और वायनाड की सीट अब प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए खाली कर दी जायेगी। इसका मतलब यह है कि राहुल गांधी दो सीटों से नहीं लड़ेंगे बल्कि केवल रायबरेली से ही चुनाव लड़ेंगे।
भाजपा नेता राजीव चंद्रशेखर ने कांग्रेस पर जनता के साथ धोखा करने और अपनी मंशाओं को छुपाने का आरोप लगाया। चंद्रशेखर ने कहा कि पार्टी ने शुरू में यह खुलासा नहीं किया था कि राहुल गांधी किसी अन्य निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने वायनाड के मतदाताओं पर अपनी वंश परंपरा को थोपना चाहा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने इसका जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के लोकसभा चुनाव का उल्लेख किया, जब उन्होंने वडोदरा और वाराणसी दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था। खेड़ा ने कहा कि मोदी ने भी अपने मतदाताओं से यह तथ्य छुपाया था कि वह वाराणसी से भी चुनाव लड़ेंगे।
भाजपा ने राहुल गांधी पर रायबरेली सीट खाली नहीं करने के लिए भी निशाना साधा। उनका आरोप है कि इसका मकसद ये है कि उपचुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित हो सके।
अगर चुनी गईं, तो यह प्रियंका गांधी वाड्रा का लोकसभा में पहला कार्यकाल होगा। इसका मतलब यह होगा कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा एक साथ संसद में होंगे।
प्रियंका गांधी वाड्रा के वायनाड से चुनाव लड़ने के इस फैसले ने राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया है। भाजपा परिवारवाद का आरोप लगाकर कांग्रेस पर हमला कर रही है, वहीं कांग्रेस भाजपा के निर्णयों और उनके नेताओं के पिछले चुनावों को गिनाते हुए पलटवार कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह राजनीति की चालें किस दिशा में जाती हैं और मतदाता क्या प्रतिक्रिया देते हैं।
वायनाड की सीट से चुनाव लड़ने का अर्थ यह है कि कांग्रेस अपने प्रमुख नेताओं को सुरक्षित और मजबूत सीटों से चुनाव हेतु मैदान में उतार रही है। प्रियंका गांधी वाड्रा की राजनीतिक सक्रियता को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि वे आने वाले चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
Hitesh Soni
जून 18, 2024 AT 19:16परिवारवाद की अवधारणा कांग्रेस द्वारा चयनित उम्मीदवारों की योग्यता से अधिक वंशानुगत अधिकारों पर आधारित प्रतीत होती है। यह रणनीति लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विरुद्ध है, क्योंकि मतदाता को वास्तविक प्रयोज्यता के बजाय रक्तसंबंध का अधिकार प्रदान किया जाता है।
rajeev singh
जून 21, 2024 AT 22:05ऐतिहासिक रूप से भारतीय राजनीति में वंशानुगत प्रतिनिधित्व का एक लंबा प्रवाह रहा है, परन्तु इसे सार्वत्रिक लोकतांत्रिक अपेक्षाओं के साथ संतुलित करना आवश्यक है। प्राथमिकता इस बात पर होनी चाहिए कि उम्मीदवार की सार्वजनिक सेवा क्षमताएँ तथा स्थानीय मुद्दों की समझ प्राथमिक मानदंड बनें।
ANIKET PADVAL
जून 25, 2024 AT 00:55देश की स्वाधीनता के बाद से राष्ट्रीय हितों की रक्षा को सर्वोच्च माना गया है, फिर भी आज सत्ता के कुर्सियों पर वंशजों को बैठाने का प्रयास देखने को मिलता है। यह न केवल लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन है, बल्कि राष्ट्रीय संकल्प को कमजोर करता है। परिवारवाद की राजनीति से जनता का भरोसा टूटता है, क्योंकि लोग योग्यताओं के बजाय रक्तसंबंध को महत्व देने वाले दलों से निराश होते हैं। कांग्रेस की यह चाल इससे पहले भी कई बार देखी गई है, जब उन्होंने शासक परिवार के सदस्य को प्रमुख सीटों पर उतारने की कोशिश की। वाराणसी और वडोदरा के उदाहरण से स्पष्ट होता है कि सत्ता को बरकरार रखने के लिये वंशजों को मैदान में उतारना एक सामान्य रणनीति बन गई है। इस रणनीति ने राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक विविधता को खतरे में डाल दिया है, क्योंकि युवा और सक्षम उम्मीदवारों को अवसर नहीं मिल पाते। इसके अलावा, ऐसे कदम से स्थानीय समस्याओं की वास्तविक समझ वाले प्रतिनिधियों को बाहर रखा जाता है, जिससे विकास कार्यों में देरी होती है। राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भी यह अंधाधुंध वंशवाद जोखिम भरा है, क्योंकि रक्षा और विदेश नीति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निरपेक्ष और योग्य लोग ही निर्णय ले सकें। इस प्रकार का परिवारवाद बाहरी दुश्मनों द्वारा भारत की एकता को कमजोर करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। हमें याद रखना चाहिए कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की ताकत उसके संस्थानों की स्वतंत्रता में है, न कि एक परिवार की शक्ति में। इसलिए यह आवश्यक है कि राजनीतिक दल इस प्रकार के गतिरोध को समाप्त करके merit‑based चयन अपनाएँ। अंततः यह विचारधारा ही हमारी जनसंख्या को सशक्त और स्वतंत्र बनाएगा।
Shivangi Mishra
जून 28, 2024 AT 03:44परिवारवाद का चुनावी हथियार बनना दिख रहा है!
ahmad Suhari hari
जुलाई 1, 2024 AT 06:34जनता को एयसे ही लुभा कर नही करनाचाहिये किउसका उडडाना है के कोसिस करना चहिए की बाइंडिंग रेलेशन देता है। इतना ही नहीं बल्कि एई स्कीम में इटनवेसन देखी जाति है नूनकिलिया मुद्दा खंाल।
shobhit lal
जुलाई 4, 2024 AT 09:23भाई लोग, देखो तो सही-इतिहास में भी dynastic politics चलती आई है, पर अब टाइम है कि हम सब मिलके "देखा" कहें कि बस फिर नहीं। वही लोग जो हर बार "मेरे‑बेटे अंदर" कहते हैं, वो असली काम से पलों दूर है।
suji kumar
जुलाई 7, 2024 AT 12:12आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं, क्योंकि यह केवल एक राजनीतिक चाल नहीं, बल्कि सामाजिक ढांचे की जाँच है; जब हम वंशावली को प्राथमिकता देते हैं, तो वास्तव में हम सामाजिक गतिशीलता को रोक देते हैं, जो हमारे लोकतांत्रिक विकास के लिए हानिकारक है; इसलिए, यह आवश्यक है कि हम इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक व्यापक संवाद स्थापित करें, जिसमें सभी वर्गों की आवाज़ें सम्मिलित हों, और साथ ही इस बात को सुनिश्चित करें कि राजनीति में merit‑based चयन का महत्व बढ़े, न कि केवल रक्तसंबंध पर आधारित निर्णय।
Ajeet Kaur Chadha
जुलाई 10, 2024 AT 15:02ओह, वाह! कांग्रेस ने फिर से वही पुरानी फ़िल्म दोहराई, जहाँ राजतीन के चचेरे भाई को ही राजगद्दी पर बिठाया जाता है। बड़ा ही दिलचस्प… असली प्रतिभा को तो भूल ही गए!
Vishwas Chaudhary
जुलाई 13, 2024 AT 17:51वास्तव में, ऐसे परिवारवादी कदम देश की साख को धूमिल कर देते हैं; जब राजनीति को केवल रक्तसंबंध के आधार पर चलाया जाता है, तो हमारी राष्ट्रीय एकता और प्रगति दोनों ही जोखिम में पड़ते हैं। यह राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध एक स्पष्ट विरोध है, और हमें इसे रोकना चाहिए।
Rahul kumar
जुलाई 16, 2024 AT 20:41देखो तो सही, जब तक कोई ख़ुद को "जैविक" नहीं कहेगा, तब तक राजनीति में परिवारवाद की धारा नहीं रुकनी चाहिए, नहीं तो जनता तो ‘मीन’ कह डाली।
indra adhi teknik
जुलाई 19, 2024 AT 23:30गौरतलब है कि चुनावी नियमों के तहत कोई भी उम्मीदवार स्वेच्छा से नामांकन दे सकता है, परन्तु शर्त यह है कि वह पार्टी की आधिकारिक मंजूरी रखता हो। इसलिए प्रियंका गांधी वाड्रा को वायनाड से मैदान में उतारना कानूनी तौर पर पूरी तरह वैध है।
Kishan Kishan
जुलाई 23, 2024 AT 02:19ओह, बहुत बढ़िया! अब तो हम सबको एक और “वायनाड‑गांधी” सीनारियो देखकर एंट्री करने का मौका मिल गया-क्या आश्चर्य!
richa dhawan
जुलाई 26, 2024 AT 05:09भाई, असल में पीछे से कुछ बड़े हाथ इस सबको नियंत्रित कर रहे हैं-कभी‑कभी तो लगता है कि ये सब सिर्फ एक बड़े साजिश का हिस्सा है, जहाँ जनता को गुमराह किया जाता है।
Balaji S
जुलाई 29, 2024 AT 07:58समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखें तो, वंशावली आधारित राजनीति एक प्रकार की सामाजिक संधारित्र है जो स्थिरता को दर्शाती है, परन्तु यह नवीनता और परिवर्तनशीलता के लिए बाधा बनती है। हमें इस द्वंद्व को समझते हुए, राजनीतिक संरचना में संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है, जहां पारम्परिक मूल्य और आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांत दोनों को समेटा जा सके। ऐसी संतुलित रणनीति न केवल मतदान व्यवहार को सकारात्मक दिशा देगी, बल्कि दीर्घकालिक सामाजिक विकास को भी गति देगी。
Alia Singh
अगस्त 1, 2024 AT 10:48समग्र रूप से, हमें इस स्थिति में आशावादी रहना चाहिए और सभी संभावनाओं को खुले दिमाग से देखना चाहिए; यदि युवा वर्ग सक्रिय रूप से इंक्लूज़न की मांग करता है, तो राजनीति भी अपने आप को पुनर्निर्मित कर सकती है।
Purnima Nath
अगस्त 4, 2024 AT 13:37बिल्कुल सही कहा, हम सब मिलकर एक सकारात्मक बदलाव की नींव रख सकते हैं, चाहे वह किसी भी सिने में हो, हमें साथ रहना चाहिए!
Rahuk Kumar
अगस्त 7, 2024 AT 16:27डायनैमिक वर्सेज स्ट्रेटेजिक एप्रोच में संतुलन जरूर होना चाहिए
Deepak Kumar
अगस्त 10, 2024 AT 19:16किसी भी उम्मीदवार को समर्थन देने से पहले उसकी स्थानीय जरूरतों और विकास योजना को देखना चाहिए।