पेरिस पैरालिंपिक में अवनी लेखरा ने जीता स्वर्ण, मोना अग्रवाल को कांस्य
अग॰, 30 2024पेरिस पैरालिंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया है। मशहूर निशानेबाज अवनी लेखरा ने 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग SH1 इवेंट में स्वर्ण पदक जीतकर एकबार फिर से इतिहास रच दिया है। उनके शानदार निशानेबाजी ने उन्हें अंतिम में 249.7 स्कोर दिलाया जो उनके अपने ही पुराने रिकॉर्ड 249.6 को भी पार कर गया। यह रिकॉर्ड उन्होंने टोक्यो 2020 पैरालिंपिक में बनाया था। इसके साथ ही अवनी दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं।
अवनी के इस विजय से भारत की पदक तालिका में एक और सुनहरा अध्याय जुड़ गया है। अवनी ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर देश का नाम गर्व से ऊँचा कर दिया है। पेरिस पैरालिंपिक में उनका यह प्रदर्शन अविस्मरणीय रहेगा। उनका आत्मविश्वास, मेहनत और समर्पण उन्हें इस मुकाम तक लाया है।
अवनी के साथ-साथ मोना अग्रवाल ने भी भारत का नाम रोशन किया। उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग SH1 इवेंट में कांस्य पदक जीता है। यह मोना का पहला पैरालिंपिक पदक है और इस जीत से उन्होंने अपने करियर में एक नया मुकाम हासिल किया है। मोना के इस अद्वितीय प्रदर्शन ने पूरे देश को गर्वित कर दिया है।
पदोन्नति और परिश्रम का प्रतीक
अवनी और मोना ने यह सिद्ध किया है कि मेहनत और लगन से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। अवनी ने पहले भी टोक्यो 2020 पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीता था, जो उनकी उत्कृष्ट प्रतिभा और मेहनत का प्रमाण है। पेरिस में दूसरी बार स्वर्ण जीतकर उन्होंने अपने नाम को एक बार फिर से दुनिया के पटल पर चमकाया है। मोना की कांस्य पदक जीत भी कम महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह उनके द्वारा किया गया कठोर परिश्रम और समर्पण दर्शाता है।
भारत के लिए गर्व का क्षण
पेरिस पैरालिंपिक में इन दोनों खिलाड़ियों की विजय ने भारत को पदक तालिका में नौवें पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया है। यह न केवल खेल प्रेमियों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है। इन खिलाड़ियों की सफलता से कई अन्य दिव्यांग खिलाडियों को प्रेरणा मिलेगी।
अवनी और मोना की इस जीत से न केवल सरकार और खेल संगठनों को बल्कि युवाओं को भी प्रोत्साहन मिलेगा। खेलों में उनकी उपलब्धियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।
अवनी की यात्रा और तैयारी
अवनी लेखरा का सफर आसान नहीं रहा है। एक दुर्घटना में स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के बाद उन्होंने न केवल जीवन को नया अर्थ दिया, बल्कि उस दुख को अपनी ताकत बना लिया। निशानेबाजी के प्रति उनके जुनून और दृढ़ संकल्प ने उन्हें इस मुकाम पर पहुचाया है। उनकी हर जीत उनके संघर्ष की कहानी बयां करती है।
अवनी ने अपनी तैयारी के दौरान न सिर्फ तकनीकी क्षमता पर ध्यान दिया, बल्कि मानसिक मजबूती को भी साधा। उनके प्रशिक्षक और परिवार का सहयोग उन्हें इस ऊँचाई तक पहुचाने में सहायक रहा है।
मोना की चुनौतियाँ और प्रेरणा
मोना अग्रवाल की यात्रा भी संघर्ष से भरी रही है। उनकी जीत यह साबित करती है कि कठिनाईयों को पार कर के ही सफलता हासिल की जा सकती है। मोना के इस विश्वस्तरीय प्रदर्शन ने उन्हें एक नई पहचान दी है। उनके इस पदक जीतने से युवा पीढ़ी प्रेरित होगी और उनमें आत्मविश्वास का संचार होगा।
भारत की सफलता का नया अध्याय
पेरिस पैरालिंपिक में अवनी लेखरा और मोना अग्रवाल की उपलब्धियों ने एक नया इतिहास रच दिया है। इनकी यह जीत केवल मेटल का आंकड़ा नहीं, बल्कि उनके संघर्ष, समर्पण और आत्मविश्वास का प्रतीक है। यह प्रदर्शन उन तमाम खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा जो कठिनाइयों को अपने रास्ते की रुकावट न मान कर उन्हें पार करते रहे हैं।
इस जीत से उन सभी को उम्मीद और हौसला मिलेगा जो विभिन्न खेलों में भारत का नाम रोशन करने का सपना देख रहे हैं। यह एक जीत नहीं, बल्कि कई और जीतों का आरंभ है। अवनी और मोना के इस प्रदर्शन ने हमारे देश की प्रतिभा और संभावनाओं को एक नई दिशा दी है।