चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर के चलते एशियाई शेयर बाजारों में भारी गिरावट

चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर के चलते एशियाई शेयर बाजारों में भारी गिरावट जून, 17 2025

ट्रेड वॉर की नई लहर और बाजारों का झटका

अप्रैल 2025 की शुरुआत एशियाई शेयर बाजारों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रही। चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर के नए दौर की वजह से क्षेत्र की लगभग सभी बड़ी शेयर मार्केट्स में निवेशक घबरा गए। सबसे ज्यादा असर जापान के निक्केई 225 पर पड़ा, जहां इंडेक्स 4.2% लुढ़क गया और 33,148.45 पर आ गया। यह गिरावट सिर्फ जापान तक सीमित नहीं रही—दक्षिण कोरिया का कोस्पी 1.3% गिरकर 2,413.16 पर बंद हुआ। ऑस्ट्रेलिया का एसएंडपी/एएसएक्स 200 भी 1.2% गिरा और 7,619.70 पर आ गया।

हांगकांग का हैंग सेंग इंडेक्स 0.4% फिसलकर 20,606.04 पर और चीन का शंघाई कंपोजिट 0.2% की मामूली गिरावट के साथ 3,218.94 पर पहुंच गया। हालांकि, ताइवान के ताएक्स इंडेक्स ने राहत की थोड़ी सांस दी और 1.5% चढ़ गया। दरअसल, व्यापार युद्ध के माहौल में ताइवान की टेक कंपनियों को उम्मीद है कि अमेरिकी कंपनियां चीन की बजाय उनसे ऑर्डर दे सकती हैं।

करेंसी मार्केट में भी हलचल दिखी। जापानी येन मजबूत हुआ और 143.64 येन/डॉलर पर पहुंच गया। यूरो की विनिमय दर भी डॉलर के मुकाबले बढ़कर $1.1306 हो गई।

अमेरिका-चीन के फैसलों से बढ़ा तनाव, निवेशकों का भरोसा डगमगाया

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इस उतार-चढ़ाव के पीछे सबसे बड़ी वजह थी अमेरिका का नया फैसला—अब अमेरिकी सरकार ने चीन से आने वाले सामानों पर टैरिफ 125% से बढ़ाकर 145% कर दिया। चीन ने भी पलटवार में अपने निर्यात पर सख्त पाबंदियां लगा दीं, खासकर रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई को टार्गेट किया। माना जाता है कि ये कच्ची धातुएं तकनीकी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों के लिए बेहद जरूरी हैं।

नतीजे में विदेशी निवेशकों ने तेजी से पैसा निकालना शुरू कर दिया। अकेले दक्षिण कोरिया से 3.27 ट्रिलियन वॉन (करीब 1.42 अरब डॉलर) के शेयर बेच दिए गए। यहाँ की बड़ी कंपनियों—सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स में 5.17%, एसके हाइनिक्स में 9.55% और ह्युंदई मोटर में 6.62% तक की गिरावट आई।

चीनी टेक कंपनियों पर भी ट्रेड वॉर का गहरा असर पड़ा। अलीबाबा, टेनसेंट और शाओमी जैसी दिग्गज कंपनियों के शेयर 12% से 20% तक लुढ़क गए। जिन बाजारों को निवेशक अब तक 'मजबूत' मानते थे, वहाँ से भी बड़ी-बड़ी रकम निकाली गई।

अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि ग्लोबल ट्रेड सिस्टम बिखरने की कगार पर दिख रहा है। ऐलिथिया कैपिटल के विन्सेन्ट चान ने कहा कि इस माहौल में बाजार का न्यूनतम स्तर कहां होगा, इसकी भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है।

अब डर ये भी है कि अमेरिका-चीन के बीच यह तनाव बाकी दुनिया में फैल सकता है। यूरोपीय संघ और कनाडा जैसी अर्थव्यवस्थाएं भी अब अपने-अपने जवाबी कदम तैयार करने में जुट गई हैं। इससे वैश्विक व्यापार और सप्लाई चेन में और भारी उथल-पुथल आ सकती है। निवेशक एक और मंदी की आहट को लेकर परेशान हैं, लेकिन अगले कदम क्या होंगे—अभी यही सबसे बड़ा सवाल है।

9 टिप्पणि

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    Jyoti Kale

    जून 17, 2025 AT 19:16

    अमेरिका की नीतियों ने हमारे बाजार को ध्वस्त कर दिया यह बिल्कुल स्पष्ट है

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    Ratna Az-Zahra

    जून 29, 2025 AT 09:03

    संकट का मुख्य कारण ट्रेड वॉर का अभूतपूर्व विस्तार है। यह केवल आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक पहलू भी दर्शाता है।

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    Nayana Borgohain

    जुलाई 10, 2025 AT 22:50

    बाजार का दर्द तो दिलचस्प है 😢

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    Shivangi Mishra

    जुलाई 22, 2025 AT 12:36

    सही कहा, इस तेज़ गिरावट ने हर दिल को धड़काया लेकिन हार मानना नहीं है हमें इस माहौल में भी उम्मीद की एक किरण दिखानी चाहिए। जापान के बाजार में जो गिरावट देखी गई वह अस्थायी है, हम भारतीय निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो को विविधता देना चाहिए। सहयोग और धैर्य के साथ हम इस तूफ़ान को पार कर सकते हैं।

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    ahmad Suhari hari

    अगस्त 3, 2025 AT 02:23

    वित्तिअ विशेषज्ञों ने इस स्थिति का गहन विश्लेषण किया है, परन्तु कुछ प्रमुख बिंदु अद्याप अस्पष्ट हैं। हमें यह समझना आवश्यक है कि टैरिफ वृद्धि का दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा।

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    shobhit lal

    अगस्त 14, 2025 AT 16:10

    देखो भाई, ये सब अमेरिका‑चीन की पेंची ही है, मार्केट हमेशा ही ऐसे ही उछल‑कूद करती है, इसलिए हल्का‑हल्का फँक कर रखो।

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    suji kumar

    अगस्त 26, 2025 AT 05:56

    एशियाई शेयर बाजारों की वर्तमान स्थिति को समझने के लिए हमें ऐतिहासिक संदर्भ में देखना चाहिए, क्योंकि पहले भी इसी तरह के ट्रेड वॉर ने बाजारों को झटका दिया था। अप्रैल 2025 में हुई नई टैरिफ वृद्धि ने न केवल जापान, कोरिया और ऑस्ट्रेलिया को बल्कि व्यापक रूप से एशिया‑पैसिफिक क्षेत्र को प्रभावित किया। निकॉनी 225 की 4.2% गिरावट, कोस्पी की 1.3% गिरावट, और एसएंडपी 200 की 1.2% गिरावट इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि निवेशक भय के कारण पोर्टफोलियो को पुनर्संतुलित कर रहे हैं। हांगकांग और शंघाई के सूचकांक में हल्की गिरावट दर्शाती है कि स्थानीय निवेशकों में असहजता बढ़ रही है, जबकि ताइवान का उल्लेखनीय उछाल यह दर्शाता है कि टेक सेक्टर में अभी भी अवसर मौजूद हैं। करेंसी बाजार में येन का मजबूती से 143.64 स्तर पर पहुंचना और यूरो की डॉलर के मुकाबले उछाल यह बताता है कि विदेशी मुद्रा धारक भी इस अस्थिरता को महसूस कर रहे हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का यह मत है कि इस प्रकार के टैरिफ संघर्षों का दीर्घकालिक प्रभाव आम तौर पर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न करता है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ती है। उदाहरण के तौर पर, दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की आपूर्ति पर प्रतिबंध ने इलेक्ट्रॉनिक्स और बैटरी उत्पादन को प्रभावित किया है, जो आगे चलकर उपभोक्ता मूल्यों में वृद्धि कर सकता है। इन परिस्थितियों में विदेशी निवेशकों ने बड़ी मात्रा में पूंजी निकाल ली है, जैसा कि कोरिया से 3.27 ट्रिलियन वॉन की बिक्री से स्पष्ट होता है। सैमसंग, एसके हाइनिक्स और हुंडै जैसी कंपनियों के शेयरों में गिरावट ने स्थानीय आर्थिक स्थिरता को चुनौती दी है। चीन की प्रमुख टेक कंपनियों-अलीबाबा, टेनसेंट और शाओमी-में भी 12% से 20% तक की गिरावट देखी गई है, जो दर्शाता है कि इस ट्रेड वॉर का प्रतिध्वनि प्रभाव व्यापक है। दुनिया भर के नीति निर्माताओं को अब अपने रणनीतिक विकल्पों को पुनः विचार करना होगा, क्योंकि इस तनाव का विस्तार यूरोपीय संघ और कनाडा तक भी हो सकता है। यदि इस संघर्ष को शीघ्रता से हल नहीं किया गया, तो वैश्विक आर्थिक मंदी की संभावना बढ़ सकती है, जिससे विकासशील देशों को विशेष नुकसान हो सकता है। निवेशकों को इस अनिश्चितता के बीच भी वैकल्पिक निवेश विकल्पों पर विचार करना चाहिए, जैसे कि बुनियादी ढाँचा, नवीकरणीय ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र। अंत में, यह कहना उचित होगा कि बाजार में अस्थायी गिरावट को दीर्घकालिक प्रवृत्ति के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे एक चेतावनी संकेत के रूप में समझना चाहिए। समय के साथ, यदि नीति निर्माता मिलकर समाधान निकालते हैं, तो एशियाई बाजार फिर से उछाल दिखा सकते हैं, लेकिन इसके लिए सहयोग और दृढ़ संकल्प आवश्यक है।

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    Ajeet Kaur Chadha

    सितंबर 6, 2025 AT 19:43

    ओह, ये तो बिल्कुल वही नाटक है जो हम हर शुक्रवार देखते हैं, ट्रेडवार का नया एपिसोड और सब को रिएक्शन देना है।

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    Vishwas Chaudhary

    सितंबर 18, 2025 AT 09:30

    भारत को चाहिए कि वह अमेरिकी दबाव को झटका दे, अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे और इस धोखे के खेल में नहीं फँसे।

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