चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर के चलते एशियाई शेयर बाजारों में भारी गिरावट

ट्रेड वॉर की नई लहर और बाजारों का झटका
अप्रैल 2025 की शुरुआत एशियाई शेयर बाजारों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रही। चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर के नए दौर की वजह से क्षेत्र की लगभग सभी बड़ी शेयर मार्केट्स में निवेशक घबरा गए। सबसे ज्यादा असर जापान के निक्केई 225 पर पड़ा, जहां इंडेक्स 4.2% लुढ़क गया और 33,148.45 पर आ गया। यह गिरावट सिर्फ जापान तक सीमित नहीं रही—दक्षिण कोरिया का कोस्पी 1.3% गिरकर 2,413.16 पर बंद हुआ। ऑस्ट्रेलिया का एसएंडपी/एएसएक्स 200 भी 1.2% गिरा और 7,619.70 पर आ गया।
हांगकांग का हैंग सेंग इंडेक्स 0.4% फिसलकर 20,606.04 पर और चीन का शंघाई कंपोजिट 0.2% की मामूली गिरावट के साथ 3,218.94 पर पहुंच गया। हालांकि, ताइवान के ताएक्स इंडेक्स ने राहत की थोड़ी सांस दी और 1.5% चढ़ गया। दरअसल, व्यापार युद्ध के माहौल में ताइवान की टेक कंपनियों को उम्मीद है कि अमेरिकी कंपनियां चीन की बजाय उनसे ऑर्डर दे सकती हैं।
करेंसी मार्केट में भी हलचल दिखी। जापानी येन मजबूत हुआ और 143.64 येन/डॉलर पर पहुंच गया। यूरो की विनिमय दर भी डॉलर के मुकाबले बढ़कर $1.1306 हो गई।

अमेरिका-चीन के फैसलों से बढ़ा तनाव, निवेशकों का भरोसा डगमगाया
इस उतार-चढ़ाव के पीछे सबसे बड़ी वजह थी अमेरिका का नया फैसला—अब अमेरिकी सरकार ने चीन से आने वाले सामानों पर टैरिफ 125% से बढ़ाकर 145% कर दिया। चीन ने भी पलटवार में अपने निर्यात पर सख्त पाबंदियां लगा दीं, खासकर रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई को टार्गेट किया। माना जाता है कि ये कच्ची धातुएं तकनीकी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों के लिए बेहद जरूरी हैं।
नतीजे में विदेशी निवेशकों ने तेजी से पैसा निकालना शुरू कर दिया। अकेले दक्षिण कोरिया से 3.27 ट्रिलियन वॉन (करीब 1.42 अरब डॉलर) के शेयर बेच दिए गए। यहाँ की बड़ी कंपनियों—सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स में 5.17%, एसके हाइनिक्स में 9.55% और ह्युंदई मोटर में 6.62% तक की गिरावट आई।
चीनी टेक कंपनियों पर भी ट्रेड वॉर का गहरा असर पड़ा। अलीबाबा, टेनसेंट और शाओमी जैसी दिग्गज कंपनियों के शेयर 12% से 20% तक लुढ़क गए। जिन बाजारों को निवेशक अब तक 'मजबूत' मानते थे, वहाँ से भी बड़ी-बड़ी रकम निकाली गई।
अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि ग्लोबल ट्रेड सिस्टम बिखरने की कगार पर दिख रहा है। ऐलिथिया कैपिटल के विन्सेन्ट चान ने कहा कि इस माहौल में बाजार का न्यूनतम स्तर कहां होगा, इसकी भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है।
अब डर ये भी है कि अमेरिका-चीन के बीच यह तनाव बाकी दुनिया में फैल सकता है। यूरोपीय संघ और कनाडा जैसी अर्थव्यवस्थाएं भी अब अपने-अपने जवाबी कदम तैयार करने में जुट गई हैं। इससे वैश्विक व्यापार और सप्लाई चेन में और भारी उथल-पुथल आ सकती है। निवेशक एक और मंदी की आहट को लेकर परेशान हैं, लेकिन अगले कदम क्या होंगे—अभी यही सबसे बड़ा सवाल है।