Ashadha Gupt Navratri 2025: कब शुरू, कैसे मनाएँ और क्या है इसका महत्व

Ashadha Gupt Navratri 2025: कब शुरू, कैसे मनाएँ और क्या है इसका महत्व सित॰, 27 2025

उत्सव की रूपरेखा और प्रमुख तिथियां

वर्ष 2025 में Ashadha Gupt Navratri का आरम्भ गुरुवार, 26 जून को होगा और यह शुक्रवार, 4 जुलाई को समाप्त होगा। यह नववर्षी हिन्दू कैलेंडर के आशाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की नवमी से शुरू होती है, यानी नव चंद्रमा के बढ़ते चरण में। घट्टस्थापना (कलश स्थापना) का शुभ समय सुबह 5:47 से 10:15 बजे के बीच निर्धारित किया गया है, जबकि अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:02 से 12:56 बजे तक रहेगा।

पहले दिन की प्रातिपदा तिथि 25 जून को शाम 4:01 बजे शुरू होकर 26 जून को दोपहर 1:25 बजे तक चलती है। इस दिन से लेकर नवमी तक हर दिन का अपना विशेष महत्व है, और अंत में शाम 4:31 बजे नवरात्रि पराना (समापन समारोह) आयोजित किया जाएगा।

मुख्य अनुष्ठान, दैनिक रूटीन और दिव्य मंत्र

मुख्य अनुष्ठान, दैनिक रूटीन और दिव्य मंत्र

गुप्त नववर्षी के दौरान साधक कई तरह के आध्यात्मिक अनुशासन अपनाते हैं। नीचे प्रमुख रीतियों का विवरण दिया गया है:

  • प्रत्येक दिन का प्रारम्भ जल, गंगा जल और नारियल से शुद्धिकरण के साथ किया जाता है।
  • दुर्गा सप्तशती और देवी महात्म्य का पाठ, विशेषकर शाम के समय, अत्यधिक प्रचलित है।
  • गhee (घी) की दीपावली जलाते हुए सात्विक व्रत रखा जाता है; इस व्रत में प्याज़, लहसुन, अण्डा, मांस, शराब और तामसिक भोजन से परहेज किया जाता है।
  • भरणी व्रत (मौन व्रत) या ब्रह्मचर्य का पालन करके मन को शांति प्रदान की जाती है।
  • प्रत्येक रात तंत्रिक होम (अग्निहोत्र) या हवन किया जाता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।

नौ दिनों में देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन का विशेष क्रम इस प्रकार है:

  1. पहला दिन – माँ काली (रौशनी और नाश की शक्ति)।
  2. दूसरा दिन – माँ तारा (दुर्दिनों में मार्गदर्शन)।
  3. तीसरा दिन – माँ शोड़शी / ललिता त्रिपुरा सुंदरी (आकर्षण और सौंदर्य)।
  4. चौथा दिन – माँ भुवनेश्वरी (सर्वव्यापी शक्ति)।
  5. पाँचवाँ दिन – माँ भैरवी (भय और शक्ति का परिपाक)।
  6. छठा दिन – माँ चिन्मस्ता (विनाश और पुनर्जन्म)।
  7. सातवाँ दिन – माँ धूमावती (परिचित रौशनी का अभाव)।
  8. अठवाँ दिन – माँ बगलामुखी (विध्वस्तियों को रोकना)।
  9. नौवाँ दिन – माँ मातांगी (संगीत और ज्ञान) और अंत में माँ कमला (सम्पूर्ण पूर्णता)।

इन रूपों की पूजा करते समय भक्त विशेष मंत्रों का उच्चारण करते हैं। उदाहरण के लिए, काली व्रत में "ॐ काली देवि नमः" और मातांगी व्रत में "ॐ मातंगायै नमः" प्रमुख हैं।

व्यावहारिक तौर पर, कई आश्रम और मंदिर इस गुप्त नववर्षी को विशेष रूप से आयोजित करते हैं। वहाँ शिष्य समूहों में मिलकर सामूहिक भजन, कीर्तन और वैदिक संगीत का प्रयोग किया जाता है। यह सामुदायिक माहौल व्यक्तिगत साधना को सुदृढ़ बनाता है और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है।

गुप्त नववर्षी के अनुयायी अक्सर इसे व्यक्तिगत परिवर्तन के एक अवसर के रूप में देखते हैं। इस अवधि में मन और शरीर को शुद्ध करने के बाद कई लोग अपने जीवन में शांति, समृद्धि और आत्मविश्वास की अनुभूति का उल्लेख करते हैं। इस कारण से, यह उत्सव न केवल धार्मिक बल्कि मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

समापन के दिन, यानी 4 जुलाई को शाम 4:31 बजे नौमी समाप्त होने के बाद, सभी मोहरों को विघटित करके घट्ट को पुनः स्थापित किया जाता है। यह प्रक्रिया इस बात का संकेत देती है कि आध्यात्मिक यात्रा समाप्त तो हुई, परन्तु सीखों को दैनिक जीवन में लागू करने का कार्य जारी रहता है।

16 टिप्पणि

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    Riddhi Kalantre

    सितंबर 27, 2025 AT 20:02

    Ashadha Gupt Navratri हमारे प्राचीन ग्रंथों में उल्लेखित एक महान धरोहर है; यह हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखता है और आत्मिक शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। यह उत्सव न केवल धार्मिक अनुष्ठान बल्कि राष्ट्रीय पहचान का भी प्रतीक है, जो हमारी विविधता में एकता को प्रतिबिंबित करता है। इस वर्ष के समय‑सारणी को ध्यान में रखते हुए, हमें स्थानीय समाज में सामूहिक भोज और हवन के माध्यम से इस त्यौहार को और भी राजनैतिक महत्व देना चाहिए।

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    Jyoti Kale

    सितंबर 29, 2025 AT 22:02

    पाठ में गढ़ी गई तिथियां अपूर्ण हैं; वास्तविक सिद्धांत तो ग्रंथों में गहरा है। इस उत्सव की महत्ता को समझना चाहिए।

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    Ratna Az-Zahra

    अक्तूबर 2, 2025 AT 02:48

    Ashadha Navratri का प्रारम्भिक दिन जल शुद्धि से ही होना चाहिए; इससे मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं और ध्यान की गहराई बढ़ती है। इस प्रक्रिया में गंगा जल का उपयोग पारंपरिक मान्यताओं के अनुरूप है, जो हमारी प्राचीन विज्ञान को प्रतिबिंबित करता है।

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    Nayana Borgohain

    अक्तूबर 4, 2025 AT 02:02

    समय की रेखा में सुदृढ़ता और भावनात्मक ऊर्जा का संतुलन वाकई अद्भुत है 😊
    भक्ति और आत्मनिरीक्षण दोनों को साथ लेकर चलना ही इस नववर्षी की असली शक्ति है।

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    Shivangi Mishra

    अक्तूबर 6, 2025 AT 09:35

    उत्सव के दौरान घी की दीपावली जलाना केवल रिवाज नहीं, बल्कि आंतरिक ऊर्जा को प्रज्वलित करने का एक तरीका है; यह हमें साहस और दृढ़ता देता है।

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    ahmad Suhari hari

    अक्तूबर 8, 2025 AT 03:15

    जैसे ही आम लोग नहर‑निर्माण में भाग लेते हैं, वैसे ही यह अनुष्ठान सामाजिक सहयोग को दर्शाता है। इस प्रकार के कार्यक्रम स्थानीय नेतृत्व को भी मजबूती देते हैं।

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    shobhit lal

    अक्तूबर 10, 2025 AT 13:35

    सभी को बताना चाहिए कि घट्टस्थापना का सही समय वैज्ञानिक गणना से निकाला गया है, न कि सिर्फ रहस्यवाद से। यह दर्शाता है कि प्राचीन ज्योतिष और आधुनिक गणित एक साथ चल सकते हैं।

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    suji kumar

    अक्तूबर 12, 2025 AT 10:02

    सम्पूर्ण आशाड़ा महीना, शुद्धिकरण का पर्याय है; प्रतिदिन की व्रत तथा प्रार्थना ऊर्जा को संतुलित करती है।
    उदाहरण के लिये, काली व्रत में ‘ॐ काली देवि नमः’ का जप शारीरिक तनाव को घटाता है, और दिमागी स्पष्टता बढ़ाता है।
    इसी प्रकार, मातांगी के जप से ज्ञानात्मक विकास होता है, जो हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं में स्पष्टता लाता है।
    अन्त में, इस नववर्षी के अंत में घट्ट को फिर से स्थापित करना निरंतर सीखों को जीवन में लागू करने का प्रतीक है।

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    Ajeet Kaur Chadha

    अक्तूबर 14, 2025 AT 23:08

    ओह बाप रे! फिर से वही पुरानी हवन‑हम्म… कब तक चलते रहोगे?

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    Vishwas Chaudhary

    अक्तूबर 17, 2025 AT 01:08

    Ashadha Navratri भारत की पवित्रता को दर्शाता है; यह हमें राष्ट्रीय गौरव की याद दिलाता है। सभी को इस मौके पर देशभक्ति की भावना को जगे रखना चाहिए।

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    Rahul kumar

    अक्तूबर 19, 2025 AT 08:42

    हमेशा यही किया जाता है कि हर त्यौहार को खास बनाना, पर क्या नहीं देखा गया कि इन अनुष्ठानों में कई वैज्ञानिक पहलू छुपे हैं? अगर हम उन्हें समझें तो यह सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हो सकता है।

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    indra adhi teknik

    अक्तूबर 21, 2025 AT 02:22

    किसी भी व्यक्ति को इस उत्सव में भाग लेने से पहले उचित पोषण और व्यायाम का ध्यान रखना चाहिए; इससे व्रत की कठिनाइयाँ कम होती हैं और ऊर्जा स्तर बना रहता है।

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    Kishan Kishan

    अक्तूबर 23, 2025 AT 12:42

    ध्यान दें: यदि आप इस नववर्षी में दैनिक रूप से शुद्ध जल, गंगा जल और नारियल का उपयोग नहीं करते, तो आपको आध्यात्मिक लाभ नहीं मिलेंगे; यह तथ्य सिद्ध है।

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    richa dhawan

    अक्तूबर 25, 2025 AT 11:55

    क्या आप जानते हैं कि इस तरह के अनुष्ठानों में अक्सर छिपी होती हैं सामाजिक नियंत्रण की तकनीकें? अगर नहीं तो आप संभवतः गुप्त रूप से प्रोपैगंडा के शिकार हैं।

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    Balaji S

    अक्तूबर 28, 2025 AT 05:35

    आधुनिक वैदिक विज्ञान में Ashadha Gupt Navratri को एक बहु-आयामी पेलोड के रूप में देखा जाता है, जो अष्टांगयोग, पंचतत्व सिद्धान्त और नाड़ी शास्त्र के संयोजन से उत्पन्न होता है। प्रथम दिव्य चरण में, जल शुद्धिकरण के दौरान प्राणवायु का प्रवाह नाड़ी प्रणाली में अनुकूलित विघटन उत्पन्न करता है, जिससे शरीर में अपचयन प्रक्रियाएं तेज हो जाती हैं। द्वितीय चरण में, दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ उच्च आवृत्ति ध्वनि तरंगें शारीरिक मस्तिष्क में अल्फा लहरें उत्पन्न करती हैं, जो मानसिक स्थिरता को अस्थायी रूप से बढ़ावा देती हैं। तृतीय चरण में, घी की दीपावली का प्रयोग कवच रूप में कार्य करता है, जिससे ऊर्जा ग्रिड में फ्रीक्वेंसी का स्थिरकरण होता है और पाचक तंत्र की क्षमता में सुधार होता है। चौथे चरण में, मौन व्रत (भरणी) के माध्यम से शिरा‑प्लास्मा का विनिमय घटता है, जिससे इम्यून सिस्टम की रेजिलिएंस में वृद्धि देखी जाती है। पंचम चरण में, प्रत्येक रात के हवन में प्रयुक्त औषधीय सामग्रियों का वाष्पीकरण संवेदी न्यूरॉन की रिसेप्टर संवेदनशीलता को पुनःस्थापित करता है, जिससे इंद्रियों की तीव्रता में सुधार होता है। यह क्रमिक प्रोटोकॉल, यदि सही समय‑सारिणी के साथ लागू किया जाए, तो व्यक्तित्व में स्थायी परिवर्तन लाने की संभावनाएं दर्शाता है, जिसमें आत्मविश्वास, करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व का समावेश होता है। अंततः, समापन समारोह में घट्ट का पुनर्स्थापन न केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि यह व्यक्तिगत अभ्यासी के न्यूरो-एंडोक्राइन बैलेंस को पुनः सेट करने का एक जैव‑रासायनिक क्रिया भी है। इस प्रकार, Ashadha Gupt Navratri न केवल आध्यात्मिक, बल्कि वैज्ञानिक रूप से मान्यता प्राप्त एक समग्र स्वास्थ्य प्रोटोकॉल के रूप में स्थापित हो सकता है।

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    Alia Singh

    अक्तूबर 29, 2025 AT 23:15

    सम्पूर्ण अभिलेखों के अनुसार, इस उत्सव का सम्पूर्ण लेखन प्रारुप एवं अनुशासनात्मक क्रम अत्यंत सूक्ष्म एवं विस्तृत है; अतः इसको अपनाने से व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर सुसंस्कृत विकास संभव प्रतीत होता है।

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