सेमी-क्रायोजेनिक इंजन — आसान भाषा में समझें

क्या आपने कभी सोचा है कि आधुनिक रॉकेट पर क्यों अलग तरह के इंजन लगे होते हैं? सेमी-क्रायोजेनिक इंजन वही है जिसमें एक ईंधन तरल अवस्था में कमरे के तापमान जैसा रहता है (जैसे केरोसिन/RP-1) और दूसरा ईंधन बेहद ठंडा होता है — तरल ऑक्सीजन (LOX)। यानी सिर्फ एक प्रोपेलेंट क्रायोजेनिक होता है, इसलिए इसे सेमी-क्रायोजेनिक कहते हैं।

यह डिजाइन पूरी तरह से नया नहीं, पर हाल के वर्षों में रीयूज़ेबल और सस्ती लॉन्च तकनीक के कारण इसकी मांग बढ़ी है। SpaceX के Merlin (LOX+RP-1) और चीन के YF-100, रूस के RD-180 जैसे व्यवहारिक उदाहरण हैं। भारत भी SCE-200 जैसा सेमी-क्रायोजेनिक इंजन विकसित कर रहा है।

मुख्य फायदे

पहला बड़ा फायदा है घनत्व: केरोसिन जैसे ईंधन का घनत्व हाइड्रोजन की तुलना में बहुत ज्यादा होता है। इसका मतलब टैंक छोटे और मजबूत बनते हैं, जिससे रॉकेट का आकार और लागत घटती है।

दूसरा, संचालन आसान है — तरल हाइड्रोजन जितना जमने/भंडारण का झंझट नहीं। प्री-लॉन्च और जमीन पर हैंडलिंग सरल होती है, जिससे turnaround समय कम हो सकता है।

तीसरा, टर्मल और इंजीनियरिंग पहलुओं में संतुलन मिलता है: अच्छे थ्रस्ट और बेहतर इंधन दक्षता के बीच संतुलन बना रहता है। इसलिए पहले चरण (first stage) में सेमी-क्रायोजेनिक समाधान लोकप्रिय हैं।

चुनौतियाँ और तकनीकी बातें

कठिनाइयाँ भी कम नहीं। सबसे बड़ी चुनौती है टर्बोपम्प और इग्निशन सिस्टम — LOX की ठंडक और केरोसिन के साथ स्थिर दहन बनाना कठिन है। कम्बशन स्टेबिलिटी, कैविटेशन और ठोस-कार्बन जमा (soot) जैसी समस्याएँ आती हैं।

सामग्री और कूलिंग डिजाइन बहुत सटीक होने चाहिए। गर्म हिस्सों पर कूलिंग प्लेट्स, पाइपिंग और लिक्विड ऑक्सीजन के लिए इन्सुलेशन बनाना महंगा हो सकता है। फिर भी, एक बार सही डिजाइन मिल जाए तो रखरखाव और चलाने की लागत तुलनात्मक रूप से कम रहती है।

पर्यावरण की नजर से देखें तो केरोसिन दहन से कण उत्सर्जन होता है, पर तकनीक सुधरने से यह घट रहा है। कई कंपनियां अब साफ-सुथरे kerosene derivatives या रीयूज़ेबल प्रणालियों से प्रभाव कम करने की कोशिश कर रही हैं।

कौन इसे अपनाता है? मध्यम से भारी श्रेणी के लॉन्चर जो पहले स्टेज में तेज त्वरण और मजबूत संरचना चाहते हैं, वे सेमी-क्रायोजेनिक का चुनाव करते हैं। यह रीयूज़ेबल बूस्टर के लिए भी अच्छा संतुलन देता है।

अगर आप रॉकेट देखने वाले हैं या उद्योग में काम करते हैं तो यह जानना उपयोगी है कि सेमी-क्रायोजेनिक इंजन ज्यादातर प्रतिस्पर्धी, नियंत्रनीय और प्रायोगिक रूप से सिद्ध होते जा रहे हैं। आने वाले सालों में यह तकनीक सस्ती और तेज़ लॉन्च सर्विस देने में अहम भूमिका निभा सकती है।

अगर चाहें, मैं SCE-200, Merlin या YF-100 जैसे विशेष इंजन के तकनीकी बिंदुओं पर अलग लेख लिखकर दे सकता हूँ — बताइए किस पर ज्यादा जानकारी चाहिए।

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30 मई, 2024 को, भारतीय स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमॉस ने 3डी प्रिंटेड सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट अग्निबाण का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। यह भारत का पहला निजी तौर पर विकसित सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन है। यह प्रक्षेपण इसरो के थुम्बा इक्वैटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन, केरल में हुआ।

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