जब हम भूस्खलन, भारी वर्षा, भूकंप या मानवीय हस्तक्षेप से पहाड़ी ढलान का अचानक गिरना. Also known as Landslide, it poses serious threats to life, property and infrastructure. यह घटना सिर्फ प्राकृतिक कारणों तक सीमित नहीं रहती; हमारी गतिविधियाँ भी बड़ी भूमिका निभाती हैं।
भारी बारिश के साथ भूकंप, भू‑भौतिक ऊर्जा के अचानक रिलीज़ से सतह पर कम्पन उत्पन्न होना. Alternate name Earthquake अक्सर ढलानों को अस्थिर कर देता है, जिससे जमीन की धरी हुई मिट्टी या चट्टान अचानक नीचे गिरती है। इसी तरह जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान में दीर्घकालिक बढ़ोतरी और हवाओं एवं वर्षा पैटर्न में बदलाव. Alternate name Climate Change से अत्यधिक बरसात और तेज़ी से पिघलते हिम स्नान दोनों ही भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाते हैं। इन दो कारकों के बीच आपसी संबंध स्पष्ट है: जब जलवायु परिवर्तन से बारिश की तीव्रता बढ़ती है, तो भू‑भूकम्प के बाद धरती की पकड़ और कमज़ोर हो जाती है।
भूस्खलन को नियंत्रित करने के लिए जोखिम प्रबंधन, हजारों लोगों और सम्पदियों की सुरक्षा हेतु खतरे की पहचान, मूल्यांकन और निवारक उपायों की योजना. Alternate name Risk Management अनिवार्य है। इसमें पहले खतरे के क्षेत्रों की मैपिंग, संभावित ट्रिगर की पहचान और समुदाय को जागरूक करना शामिल है। साथ ही चेतावनी प्रणाली, सेन्सर, रडार और मौसम स्टेशन से डेटा लेकर समय पर अलर्ट भेजना. Alternate name Early Warning System लोगों को खाली करने के पर्याप्त समय देती है, जिससे मौतों और चोटों में काफी कमी आती है। ये दोनों घटक मिलकर भूस्खलन से जुड़ी अनिश्चितता को घटाते हैं।
रोकथाम के उपायों में सबसे असरदार है भूस्खलन‑रोधक वनरोपण और ढलान की स्थिरीकरण। उचित पेड़‑पौधे जड़ प्रणाली को गहरा करते हैं, पानी को धीरे‑धीरे अवशोषित करते हैं और मिट्टी के कणों को बाँधते हैं। साथ ही जल निकासी के लिये टेरेस वाले बुनियादी ढाँचे, सड़कों के नीचे ड्रेनेज पाइप और जलाशयों का निर्माण बहुत मददगार है। पुनर्वास के दौरान बर्बाद हुई बंजर जमीन को फिर से खेती योग्य बनाना, स्थानीय समुदाय को वैकल्पिक आजीविका देना और हटाए गए बस्तियों को सुरक्षित स्थान पर पुनर्स्थापित करना आवश्यक है। ये कदम न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा करते हैं, बल्कि सामाजिक स्थिरता भी बनाते हैं।
सरकारी एजेंसियों, शैक्षणिक संस्थानों और स्थानीय NGOs को मिलकर काम करना चाहिए। भू‑वैज्ञानिक सर्वेक्षण, नीतिगत समर्थन और फंडिंग के बिना कोई योजना लंबा नहीं चल सकती। उदाहरण के तौर पर, बाढ़‑प्रवण क्षेत्रों में प्री-इंजीनियरिंग उपायों को लागू करना और भूमिगत जल स्तर की लगातार निगरानी करना प्रभावी साबित हुआ है। इस तरह के सामूहिक प्रयासों से न केवल वर्तमान जोखिम घटता है, बल्कि भविष्य में संभावित भूस्खलन की आवृत्ति भी कम होती है।
अब आप इन सभी बिंदुओं के बारे में जानते हैं। नीचे दिए गए लेखों में आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों में भूस्खलन से जुड़े मुद्दे प्रतिबिंबित होते हैं—चाहे वह जलवायु के बदलाव हों, भू‑भौतिक घटनाएँ या सामाजिक‑आर्थिक पहलू। इस जानकारी के साथ आप खुद भी अधिक जागरूक और तैयार रह सकते हैं।
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