PM मोदी ने बांसवाड़ा में 1.22 लाख करोड़ के विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया

परियोजनाओं का पैमाना और महत्व
बांसवाड़ा में सार्वजनिक तौर पर आए PM मोदी ने एक ही दिन में दो‑तीन सैंकड़ों करोड़ रुपये मूल्य की परियोजनाओं का दिया प्रस्ताव। सबसे बड़ा था अंशुक्ति विद्युत निगम लिमिटेड (ASHVINI) का महि बांसवाड़ा रियासत न्यूक्लियर पॉवर प्रोजेक्ट, जिसकी कुल लागत 42,000 करोड़ रुपये है। यह प्रोजेक्ट चार स्वदेशी 700 मेगावॉट प्रेस्यराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (PHWR) से बना होगा और भारत के ‘फ़्लीट मोड’ योजना का अहम हिस्सा है, जहाँ दस ऐसे रिएक्टर एक ही डिज़ाइन पर बनेंगे।
ऊर्जा के क्षेत्र में नवीकरणीय पहल भी काफ़ी बड़ी रही। पीएम‑कुसुम के तहत 3,517 मेगावॉट ऊर्जा को सौर पैनलों से संचालित किया जाएगा, जिसकी लागत 16,050 करोड़ रुपये है। इस योजना के तहत कृषि फ़ीडर लाइनों को सौर ऊर्जा से संचालित किया जाएगा, जिससे किसान उन पर निर्भर बिजली की दरें घट जाएँगी और ग्रामीण ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी। राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और कर्नाटक में समान स्तर की सौरकरण हो रही है, जो देश की कुल सौर ऊर्जा लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
जल सुरक्षा के लिए भी 20,830 करोड़ रुपये की योजनाएँ सामने रखी गईं। इस पैकेज में इसरदा बांध, मोर सागर कृत्रिम जलाशय, बिचलपुर बांध के पम्पहाउस, और खारी फ़ीडर की पुनरुद्धार कार्य शामिल हैं। इसरदा जलाशय का विस्तार, धोलपुर लिफ्ट प्रोजेक्ट और तकली प्रोजेक्ट को भी रामजल सेटु लिंक प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में शुरू किया गया, जिससे दक्षिण राजस्थान में जल आपूर्ति में स्थायी सुधार की सम्भावना बनती है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में अप्रैल में शुरू हुए AMRUT 2.0 के तहत 5,880 करोड़ रुपये की पेयजल आपूर्ति योजना, 2,630 करोड़ रुपये की सड़कों और पुलों की परियोजनाएँ, और जेसलमेर, बीकानेर, बारमेर में तीन ग्रिड सबस्टेशनों की स्थापना के लिए 490 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई। इसके अलावा 250 बिस्तर वाली आरबीएम अस्पताल, जयपुर में आईटी विकास और ई‑गवर्नेंस केन्द्र, और कई जिलों में नया सीवर व जल आपूर्ति नेटवर्क खोलने की घोषणा की गई।
वंदे भारत की दो नई ट्रेनें भी बैंडेड हुईं, जिससे तेज़ रेल की सुविधा कुल मिलाकर राजस्थान में बढ़ेगी। इन सबके साथ 15,000 नए सरकारी कर्मचारियों को नौकरी के पत्र वितरित किए गए, जो स्थानीय रोजगार में नया जोश लाने का संकेत देते हैं।

स्थानीय प्रतिक्रिया और भविष्य की राह
भवन योजना के दौरान पीएम‑कुसुम के लाभार्थियों से बातचीत में प्रधानमंत्री ने कहा कि सौर ऊर्जा से न केवल बिजली की लागत घटेगी, बल्कि किसानों का आय बढ़ेगा। उन्होंने बताया कि ‘पीएम सूरज घर’ योजना के तहत ग्रामीण घरों में मुफ्त बिजली उपलब्ध कराई जाएगी, जबकि कुसुम के तहत फ़ार्म पोम्प में सौर पैनल लगाकर बिजली बिल न के बराबर खर्च बचाया जा सकेगा।
स्थानीय नेतृत्व ने इस दौरे को ‘दक्षिण राजस्थान में विकास की नई सुबह’ कहा। कई आदिवासी समुदायों ने महि नदी के महत्व को दोहराते हुए बताया कि जल परियोजनाएँ उनकी जीवनशैली को स्थायी रूप से बदलेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले सरकारों की नज़रअंदाज़ी और भ्रष्टाचार ने इस क्षेत्र को पीछे धकेला था, लेकिन अब नई ऊर्जा, जल सुरक्षा और बुनियादी ढाँचे के साथ उनकी उम्मीदें फिर से जगा है।
भविष्य की दिशा को देखते हुए, राज्य सरकार ने कहा कि अगले पाँच वर्षों में पूरे दक्षिणी राजस्थान में 10,000 मेगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की योजना है। साथ ही, जलसंधारण के लिए नए छोटे बाँध और जलभण्डार बनेंगे, जिससे सूखे के मौसम में भी खेती चल सकेगी।
समग्र रूप से, इस दौरे ने दिखाया कि केंद्र और राज्य मिलकर बांसवाड़ा सहित पूरे दक्षिण राजस्थान में बुनियादी ढाँचा, ऊर्जा, जल और स्वास्थ्य सेवाओं को एक नई दिशा दे रहे हैं। इस ऊर्जा‑सुरक्षा‑विकास मॉडल को देखते हुए, अन्य राज्यों के अधिकारियों ने भी इसे अपनाने की इच्छा जताई है।
Kishan Kishan
सितंबर 26, 2025 AT 02:50देखिए, बांसवाड़ा में इतने बड़े‑बड़े प्रोजेक्ट्स का एक साथ शुरू होना, यह तो बिल्कुल वही है जो हम सब ने political‑economy की चाय‑परोस में सुना था; लेकिन हाँ, इस बार संख्या‑जाँच में थर्मल, सोलर, जल‑सुरक्षा सब मिलकर एक बड़ी कॉलोनी बन रही है, तो चलिए हम भी इस अवसर का फायदा उठाते हैं: एएसएचविनी न्यूक्लियर प्रोजेक्ट के 42,000 करोड़ खर्च को समझें, फिर पीएम‑कुसुम के 16,050 करोड़ सौर‑ऊर्जा योजना को, और अंत में 20,830 करोड़ की जल‑सुरक्षा पहल को, ताकि ग्रामीण बिजली‑दर घटे, किसान की आय बढ़े, और जल‑आपूर्ति स्थिर रहे; अब आप सोच रहे होंगे, क्या ये सब वास्तविकता में आगे बढ़ेगा? जवाब है-हां! सिर्फ़ योजना बनाना नहीं, बल्कि जमीन पर इम्प्लीमेंटेशन भी उतना ही जरूरी है, और इस बीच हमें ये देखना भी चाहिए कि स्थानीय प्रशासन किस तरह इन फंड्स को ट्रांसपेरेंटली मैनेज कर रहा है; अगर सही मॉनिटरिंग नहीं हुई तो ये बड़े‑बड़े आंकड़े सिर्फ़ काग़ज़ पर रह जाएंगे, इसलिए हम सभी को चाहिए कि हम इस प्रक्रिया पर निकट‑नजर रखें, सवाल पूछते रहें और जवाब मांगते रहें।
Shivangi Mishra
सितंबर 26, 2025 AT 03:53यह उछाल, बिल्कुल नई सुबह जैसा-बांसवाड़ा अब सच्ची शक्ति का केंद्र बन रहा है!
ahmad Suhari hari
सितंबर 26, 2025 AT 05:00इस परियोजनाओं के विस्तार को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि सरकार ने आर्थिक विकास के लिये एक विस्तृत व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाया है; इसमेँ एएसएचविनी प्रोजेक्ट का 42,000 करोड़ क़ीमत, तथा सौर ऊर्जा हेतु 16,050 करोड़ क़ीमत को दिये गये इकाईयों के लिये समुचित बिन्दु स्थापित करना आवश्यक है। यद्यपि, इस प्रकार के बड़े पाईमाने पर चलने वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में अक्सर बजट ओवररन और अंडरएस्टिमेशन की घाटी देखी जा सकती है, इस कारण नियमानुसार निरपदक्षता की जाँच एवं समय‑समय पर ऑडिट को बाध्य करना अति आवश्यक है।
shobhit lal
सितंबर 26, 2025 AT 06:06भाइयों, मैं देख रहा हूँ कि हर कोई इन बड़े‑बड़े आंकड़ों की बात कर रहा है, पर असली बात तो यह है कि जमीन पर काम कैसे हो रहा है-क्या मजदूरों को सही वेतन मिल रहा है, क्या स्थानीय लोग इन प्रोजेक्ट्स से सीधे लाभ उठा रहे हैं, ये सब तो हमें पूछना चाहिए, नहीं तो ये सब बस दिखावा ही रहेगा।
suji kumar
सितंबर 26, 2025 AT 07:13बांसवाड़ा के इस ऐतिहासिक विकास के क्षण पर, हमें न केवल आर्थिक पहलुओं को बल्कि सामाजिक‑सांस्कृतिक प्रभावों को भी गहराई से समझना चाहिए; क्योंकि यह प्रदेश, जहाँ पर ऐतिहासिक रूप से परम्परा और आधुनिकता का अद्भुत संगम रहा है, अब नई ऊर्जा‑सुरक्षा‑विकास मॉडल के द्वारा एक नया स्वर ले रहा है।
पहले तो, एएसएचविनी न्यूक्लियर प्रोजेक्ट के द्वारा जो ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित हो रही है, वह न केवल राष्ट्रीय ग्रिड को मजबूत करेगी, बल्कि स्थानीय जलवायु परिवर्तन के प्रति स्थिरता भी प्रदान करेगी; इस प्रकार के चार स्वदेशी PHWR के निर्माण से तकनीकी ज्ञान का प्रसार और युवा प्रतिभाओं को विज्ञान‑प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आकर्षित किया जा सकता है।
दूसरे, पीएम‑कुसुम के अंतरगत 3,517 मेगावॉट सौर ऊर्जा को सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में लाने से, न केवल बिजली की कीमत में कमी आएगी, बल्कि कृषि‑आधारित उद्योगों को भी सस्ती ऊर्जा उपलब्ध होगी, जिससे ग्रामीण उत्पादन में वृद्धि होगी।
तीसरे, जल‑सुरक्षा के लिये 20,830 करोड़ की योजना के तहत इसरदा बांध, मोर सागर आदि का विस्तार, क्षेत्रीय जल‑संकट को कम करने में सहायक सिद्ध होगा; इस प्रकार से जल‑भंडारण के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करके, सूखे के मौसम में भी खेती‑किसानी जारी रह सकेगी।
चौथे, स्वास्थ्य‑सेवा के तहत नया आरबीएम अस्पताल और ई‑गवर्नेंस केन्द्र बनना, इन क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता और स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
पाँचवे, AMRUT 2.0 के तहत पेयजल, सड़कों, पुलों की परियोजनाएँ, और ग्रिड सबस्टेशन की स्थापना, यह अंततः क्षेत्र को शहरी‑ग्रामीण समन्वय में लाएगी, जिससे सामाजिक‑आर्थिक असमानताएँ कम होंगी।
इन सभी पहलुओं की गहराई से जांच करने पर हम समझ पाएंगे कि बांसवाड़ा में यह विकास मॉडल, केवल आर्थिक वृद्धि ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता को भी सम्मिलित करता है; इस कारण, हमें इस परिवर्तन को केवल सरकारी आँकड़ों के दृष्टिकोन से नहीं, बल्कि मानव‑केन्द्रित दृष्टिकोण से भी आंकना चाहिए।