Mahavatar Narsimha बॉक्स ऑफिस पर धमाका: भारतीय एनीमेशन की नई उड़ान के 5 ठोस कारण

Mahavatar Narsimha बॉक्स ऑफिस पर धमाका: भारतीय एनीमेशन की नई उड़ान के 5 ठोस कारण सित॰, 20 2025

भारतीय एनीमेशन ने थिएटर में वही कर दिखाया जिसकी चर्चा सालों से केवल पैनलों और पिच डेक में होती थी। Mahavatar Narsimha ने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर पकड़ बनाई, बल्कि 2025 की चौथी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म बनते हुए 2014 की ‘कोचादैयां’ को भी पीछे छोड़ दिया—और यह सब एक एनिमेटेड मिथोलॉजिकल एक्शन फिल्म के साथ। दर्शकों के लिए यह सिर्फ फिल्म नहीं, एक अनुभव निकला, जिसमें पूजा, पौराणिक कथा और पैमाने का नया कॉम्बिनेशन दिखा।

फिल्म, बॉक्स ऑफिस और संदर्भ

निर्देशक अश्विन कुमार के डेब्यू में बनी यह 2 घंटे 10 मिनट की फिल्म दो अवतार—वराह और नरसिंह—की कथाओं को एक जड़ी हुई कथा में जोड़ती है। आधार पुराणों के मूल प्रसंग हैं—प्रह्लाद का अडोल विश्वास, हिरण्यकशिपु का दर्प और ‘धर्म’ की रक्षा के लिए प्रकट होता दिव्य संहार। यह धार्मिक भावनाओं के सहारे चलती फिल्म नहीं लगती; यह कहानी कहने की ईमानदारी से बनती फिल्म लगती है। यही ईमानदारी, बड़े परदे पर दर्शकों की आंखों में दिखी।

बॉक्स ऑफिस पर इसकी चढ़ान जेनर के हिसाब से अप्रत्याशित थी। घरेलू बाजार में फैमिली ऑडियंस और मंदिर-शहरों के सर्किट्स में शुरुआती उछाल दिखा, वहीं प्रवासी भारतीयों वाले केंद्र—गल्फ, उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया—में सप्ताहांत के शोज़ लगातार बढ़ते गए। वजह सीधी है: परिवार साथ जा सके, बच्चों को कहानी मिल जाए, बड़ों को भक्ति और संदर्भ, और युवाओं को एक्शन व विजुअल स्केल।

यह फिल्म 25 नवंबर 2024 को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI) में स्क्रीन हुई और 25 जुलाई 2025 को 2D और 3D में थिएटर रिलीज मिली। फेस्टिवल प्रीमियर से क्रेडिबिलिटी आई और बीच के महीनों में मार्केटिंग टीम को ऑडियंस का तापमान पढ़ने का समय भी। लॉकस्टेप कैंपेनिंग, टीज़र-ट्रेलर की कैडेंस, और स्कूल-हॉलिडे विंडो के आसपास रिलीज—इन तीनों ने थिएट्रिकल फुटफॉल को सहारा दिया।

‘कोचादैयां’ की तुलना जरूरी है, क्योंकि वही अब तक एनिमेशन/मो-कैप स्पेस का बेंचमार्क मानी जाती थी। फर्क यह कि उस वक्त तकनीक पहली बार मेनस्ट्रीम चर्चा में आई थी; इस बार तकनीक कहानी के पीछे खड़ी दिखाई दी। ‘महावतार नरसिंह’ का 3D आर्ट-डिज़ाइन, लाइटिंग और कैरेक्टर स्कल्प्टिंग, बजट सीमाओं के बावजूद, फ्रेम दर फ्रेम परिश्रम दिखाता है। यहां विजुअल्स ‘वाह’ कराने के साथ अर्थ भी बनाते हैं।

संगीतकार सैम सी. एस. का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की नब्ज है। कई सीन्स में संवाद कम हैं, स्कोर ज्यादा बोलता है—खासकर नरसिंह के प्रकट होने वाले क्लाइमेक्स ब्लॉक में। बड़े स्केल की ध्वनि, लोक-गायन के टेक्सचर और परकशन-ड्राइव—ये चीजें दृश्य-श्रव्य अनुभव को हाई-टाइड पर रखती हैं। गाने प्लेलिस्ट-फ्रेंडली की बजाय कथा-प्रेरित हैं, जो थिएटर के भीतर फिल्म को गति देते हैं।

क्रिटिक्स ने इसे ‘पिक्सार-ग्रेड’ नहीं कहा—और टीम ने शायद वैसा दावा किया भी नहीं—लेकिन महत्वाकांक्षा, दिल और सांस्कृतिक जड़ों पर फिल्म ने क्लास पास कर लिया। रिव्यूज़ में बार-बार एक ही लाइन लौटी: पॉलिश कुछ जगह कम हो सकती है, पर विज़न साफ है। यही विज़न दर्शकों की चर्चा में बदला और चर्चा ने टिकट खिड़की पर कतारें बढ़ाईं।

सबसे अहम बात—यह किसी वन-ऑफ प्रयोग की तरह नहीं आया। यह ‘महावतार सिनेमैटिक यूनिवर्स’ की पहली कड़ी है—दस अवतारों पर आधारित सात-फिल्म की योजना के साथ। फ्रेंचाइज़िंग की यह सोच जोखिम भी है और अवसर भी। शुरुआती किस्त चली है, तो आगे की स्क्रिप्टिंग, टेक्निकल स्केलिंग और कैलेंडर की अनुशासनात्मकता अब निर्णायक होगी।

सफलता के 5 बड़े कारण और आगे की राह

  • 1) असली सांस्कृतिक कहानी, आध्यात्मिक जुड़ाव: प्रह्लाद-हिरण्यकशिपु का प्रसंग भारतीय घरों में पीढ़ियों से सुनाया जाता रहा है। फिल्म ने उसी कथा को ‘री-इमेजिन’ करने की बजाय मूल रूप में ‘री-एक्सपीरियंस’ कराया। श्लोक-प्रेरित संवाद, अनुष्ठानिक सौंदर्यशास्त्र और धर्म-अधर्म के द्वंद्व की स्पष्टता—इन सबने दर्शकों को मंदिर-परिसर जैसा भाव दिया, पर सिनेमाई ऊर्जा के साथ। देवत्व का चित्रण श्रद्धा से किया गया, न कि सनसनी बनाने के लिए; यही भरोसा बनाता है।

  • 2) विश्व-स्तरीय एनीमेशन, बजट के भीतर: भारतीय एनीमेशन का सबसे बड़ा संकट—कुशल प्रतिभा तो है, पर लंबे शेड्यूल और भारी रेंडर लागत के लिए जेब पतली पड़ जाती है। इस फिल्म ने डिजाइन-चॉइसेज़ को स्टाइलाइज़ रखा—हाइपर-रियलिज्म से दूरी, पर टेक्स्चरिंग, लाइटिंग और कैमरा-ब्लॉकिंग में पीक क्राफ्ट—जिससे शॉट्स ‘अफोर्डेबल’ भी रहे और ‘असरदार’ भी। क्लीन एक्शन जियोग्राफी, डीप-फोकस और स्पेक्युलर हाइलाइट्स की समझ, इसे भीड़ से अलग करती है।

  • 3) सैम सी. एस. का स्कोर—भाव और बल दोनों: बैकग्राउंड स्कोर केवल सजावट नहीं, कहानी का चालक है। नरसिंह-प्रकट जैसे सीक्वेंस में ऑडियो-डायनेमिक्स दर्शक की धड़कन सेट करते हैं। लोक-रागों के मोटिफ और सिंफॉनिक स्ट्रिंग्स का मिश्रण ‘गर्स’ पैदा करता है। थिएटर में यही ‘राइज़-एंड-रिलीज़’ पल तालियों में बदलते हैं।

  • 4) क्रिटिकल रिसेप्शन और वर्ड-ऑफ-माउथ की लहर: शुरुआती शोज़ से ही परिवार-उन्मुख रिव्यूज़ आए—“बच्चों के लिए समझने योग्य, बड़ों के लिए अर्थपूर्ण।” सोशल मीडिया क्लिप्स ने बिना भारी-भरकम खर्च के फिल्म को शहर-दर-शहर पहुंचाया। कई दर्शकों ने इसे ‘मस्ट-वॉच’ कहा—कारण: भावनात्मक हाई, साफ कथ्य और तकनीकी प्रगति का संगम।

  • 5) रणनीतिक रिलीज़ और फ्रेंचाइज़ पोजिशनिंग: IFFI की विंडो से प्रतिष्ठा, उसके बाद समय लेकर मार्केट वार्म-अप, और फिर 2D/3D का डुअल ऑफर—इस क्रम ने मल्टी-कोहोर्ट ऑडियंस को साथ जोड़ा। ‘महावतार सिनेमैटिक यूनिवर्स’ की घोषणा ने फर्स्ट-मूवर एडवांटेज दिया—दर्शक जान गए कि यह एक यात्रा की शुरुआत है।

अब असर की बात। एक कमर्शियल-स्केल एनिमेटेड फिल्म के सफल होने से सबसे बड़ा फायदा यह कि स्टूडियोज़ के लिए लंबी अवधि के प्रोजेक्ट्स को फंड करना आसान होगा। प्रतिभाशाली एनिमेटर्स और टेक्निकल आर्टिस्ट्स को अब ‘सुरक्षित करियर’ का भरोसा दिखेगा, जो पहले टीवी-कॉमर्शियल्स और शॉर्ट-टर्म गिग्स तक सीमित रहता था।

तकनीकी पक्ष पर भी एक शिफ्ट साफ दिखता है—कहानी-प्रथम विजुअल लुक। हाइपर-रियल ह्यूमन फेसियल एनीमेशन, जो बजट खा जाती है, उसके बजाय टीम ने स्टाइलाइज्ड ह्यूमन और महाकाव्यात्मक बैकड्रॉप चुना। इससे एक ओर ‘वैली ऑफ स्ट्रेंजनेस’ से बचाव हुआ, दूसरी ओर स्क्रीन पर मिथकीय भव्यता बनी रही। यह प्रैगमैटिक एस्थेटिक्स का मामला है—सीमित संसाधनों में अधिकतम प्रभाव।

डिस्ट्रिब्यूशन एक अहम सीख छोड़ता है। 3D के शो-मल्टीप्लायर ने बच्चों-युवाओं को आकर्षित किया, और 2D ने उन सिंगल स्क्रीन बाजारों में जगह बनाई जहां 3D चश्मे की उपलब्धता बाधा बनती है। यानी विकल्प देकर फिल्म ने बाधाओं को ही एंट्री-पॉइंट बना लिया।

क्रिटिक्स की सूक्ष्म आपत्तियां भी दर्ज हैं—कहीं-कहीं संवादों में उपदेशात्मकता, कुछ मध्य-खंडों में पेसिंग ढीली, और कॉम्प्लेक्स कैरेक्टर आर्क्स की जगह आर्केटाइप्स का वर्चस्व। पर मेनस्ट्रीम दर्शक के लिए यह ट्रेड-ऑफ स्वीकार्य रहे, क्योंकि उद्देश्य स्पष्ट था: परिवार के साथ अनुभव लेना, न कि केवल टेक-डेमो देखना।

मार्केट के स्तर पर यह एक संकेत है—धार्मिक/मिथोलॉजिकल कंटेंट, अगर सिनेमाई रूप में आधुनिक और संवेदनशील तरीके से ढाला जाए, तो थिएटर में भीड़ ला सकता है। ओटीटी ने धार्मिक डॉक्यू-सीरीज के लिए स्पेस बनाया; थिएटर में यह फिल्म दिखाती है कि ‘इवेंट-एक्सपीरियंस’ वाला कंटेंट अब उसी स्पेस को कब्जा कर सकता है।

विदेशों में इसकी स्वीकार्यता यह बताती है कि ‘कल्चरल स्पेसिफिक’ होने का मतलब ‘ग्लोबल्ली सीमित’ होना नहीं है। जो कहानी सच में अपनी जड़ में ईमानदार हो, उसका लोकल भी मजबूत होता है और ग्लोबल भी। प्रह्लाद की आस्था और अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना—ये सार्वभौमिक भाव हैं, और एनीमेशन उन्हें अनुवाद के झंझट से मुक्त कर देता है।

फ्रेंचाइज़ की राह हालांकि आसान नहीं। अगली किस्त में स्केल बढ़ाना होगा, पर कथा का फोकस नहीं टूटना चाहिए। भारत में फ्रेंचाइज़-निर्माण अक्सर कैलेंडर-प्रेशर के नीचे गुणवत्ता खो देता है। यहां लेखन-रूम, प्री-प्रोडक्शन और एनीमेशन पाइपलाइन की लय ही सब कुछ तय करेगी। एक भी जल्दबाजी वाली फिल्म पूरी यूनिवर्स के भरोसे को चोट पहुंचा सकती है।

संगीत के मोर्चे पर, सैम सी. एस. ने जो सॉनिक-आइडेंटिटी सेट की है, उसे अलग-अलग अवतारों में बरकरार रखते हुए नया भी करना होगा—एक कठिन संतुलन। दर्शक अगले पार्ट में ‘वही अहसास, नए रूप’ की उम्मीद लेकर जाएंगे।

और अंत में दर्शक-जनसांख्यिकी। यह फिल्म तीनों ध्रुवों को एक साथ पकड़ती है—पारिवारिक दर्शक, श्रद्धालु दर्शक, और मेनस्ट्रीम एक्शन दर्शक। ऐसे क्रॉस-ओवर को टिकाऊ बनाने के लिए टिकट-कीमत, शो-टाइमिंग और री-रिलीज़ स्ट्रैटेजी (त्यौहार/अवकाश विंडोज़) जैसे फैसले अहम होंगे।

जो लोग पूछ रहे हैं—क्या यह ‘एक्सेप्शन’ है या ‘टर्निंग पॉइंट’? संकेत बदलते हुए दिखते हैं। एक बड़ी एनिमेटेड फिल्म ने रेवेन्यू-लैडर पर चढ़कर फ्रेंचाइज़ की बुनियाद रख दी है। अब गेंद इंडस्ट्री के पाले में है—क्या वह लगातार ऐसे प्रोजेक्ट्स को पोषित कर पाएगी, क्या राइटर्स-रूम और आर्ट-टीम को समय और संसाधन दे पाएगी, और क्या थिएट्रिकल-ओटीटी तालमेल बनाकर स्केल को स्थिर कर पाएगी।

फिलहाल इतना साफ है: ‘महावतार नरसिंह’ ने भारतीय एनीमेशन को ‘निश’ से ‘नेशनल-इवेंट’ में अपग्रेड कर दिया है। बॉक्स ऑफिस ने इसकी पुष्टि कर दी, और सिनेमाघरों के बाहर की बातचीत ने इसे यादगार बना दिया। अब अगली कड़ी पर निगाह है—कहानी कहने की यह नई धड़कन क्या स्थायी लय बन पाती है?

13 टिप्पणि

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    Vishwas Chaudhary

    सितंबर 20, 2025 AT 20:11

    देश की एनीमे को इस फिल्म ने दिखा दिया कि हम भी पिक्सार के बराबर हैं

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    Rahul kumar

    सितंबर 20, 2025 AT 21:51

    इसे सबने चमत्कार कहा लेकिन असल में ये वही पुरानी कथा‑पुनरुत्थान है जो हर साल देखते‑देखते थक गया हूँ मैं कहूँ तो बजट‑सीमित एनीमेशन में इतनी चमक पाना आसान नहीं है पर फिर भी तकनीकी शॉर्टकट दिखाए गए हैं इस फिल्म ने दर्शकों को पुरानी रीत‑रिवाजों से जोड़ते हुए नई विज़ुअल भाषा पेश की है कहानी‑संकल्पना को बिगड़ते‑बजट में भी बँधाए रखता है जबकि संगीत ने भावनात्मक गहराई जोड़ दी है कुल मिलाकर यह एक जोखिम भरा प्रयोग है जो कुछ हद तक सफल रहा है

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    indra adhi teknik

    सितंबर 20, 2025 AT 23:31

    अगर एनीमे प्रोडक्शन पाइपलाइन की बात करें तो इस प्रोजेक्ट ने फोर‑स्टेज रिवर्स एंगिनियरिंग अपनाई है यानी प्री‑विज़ुअलाइज़ेशन से लेकर रेंडर‑फ़ार्म ऑप्टिमाइज़ेशन तक हर कदम पर डेटा‑ड्रिवेन निर्णय लिए गए हैं इससे बजट कंट्रोल में मदद मिली है साथ ही रिगिंग में मॉड्यूलर एप्रोच ने टूल्स के री‑यूज़ को आसान बनाया है यह मॉडल भविष्य के फ्रैंचाइज़ प्रोजेक्ट्स के लिए एक बेहतरीन रेफरेंस सेट करता है

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    Kishan Kishan

    सितंबर 21, 2025 AT 01:11

    वाह क्या शानदार काम किया टीम ने! बजट के अंदर रहकर 3D‑डिज़ाइन को इतना पॉलिश कर दिया मानो बड़े स्टूडियो की प्रोडक्शन है, लेकिन कभी‑कभी कुछ फ्रेम में लाइटिंग की फीलिंग थोड़ी प्लेन लगती है, यही छोटा‑छोटा खामियां दर्शकों को दिखती हैं; फिर भी समग्र अनुभव को देखते हुए कहना पड़ेगा कि यह एक बड़ी सफलता है, शायद अगली कड़ी में और रिसोर्सेज़ डालें तो और भी चमक आएगी

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    richa dhawan

    सितंबर 21, 2025 AT 02:51

    सुनो, इस एनीमे के पीछे के फाइनेंस का क्या हाल है? कहीं यह फिल्म बड़े विदेशी फंडिंग के बिना नहीं बनी होगी, नहीं तो इतने हाई‑डेफिनिशन विज़ुअल्स और ग्लोबल डिस्ट्रिब्यूशन कैसे सम्भव हो पाते? मेरे ख्याल से यही छुपा हुआ कारन है कि सरकारी एनीमेशन सॉफ़्टवेयर पर भरोसा नहीं किया गया

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    Balaji S

    सितंबर 21, 2025 AT 04:31

    महाविलक्षणीय पहल यह दर्शाती है कि पारम्परिक मिथोलॉजी को अगर री‑इन्हांसमेंट फ्रेमवर्क के साथ जोड़ा जाये तो वह न केवल सांस्कृतिक निरूपण में बल्कि टेक्नोलॉजी‑आधारित स्टोरीटेलिंग में भी नई संभावनाएँ खोलता है। इस प्रोजेक्ट ने मॉड्यूलर शेडर‑आर्किटेक्चर लागू किया जिससे रेंडर‑टाइम में 30% दक्षता बढ़ी। साथ ही, लाइट‑प्रोब‑डिस्ट्रीब्यूशन के लिए डायनामिक बाइल्यूआरएल मैपिंग अपनाई गई जिस कारण हाइलाइट्स में nuance अधिक स्पष्ट हुआ। इन सभी तकनीकी पहलुओं की वजह से सीमित बजट में भी उच्च‑फिडेलिटी विज़ुअल्स को हासिल किया गया। इस तरह का हाइब्रिड एप्रोच भविष्य में भारतीय एनीमेशन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना सकता है।

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    Alia Singh

    सितंबर 21, 2025 AT 06:11

    सभी को नमस्कार, इस महत्त्वपूर्ण विश्लेषण हेतु धन्यवाद। यह स्पष्ट है कि महावतार नरसिंह ने न केवल बॉक्स‑ऑफिस में सफलता पाई, बल्कि तकनीकी एवं सांस्कृतिक स्तर पर भी मील का पत्थर स्थापित किया है। आगे की फ्रैंचाइज़ में कथा‑संरचना की गहराई तथा प्रोडक्शन वैल्यू को और बढ़ाने की आवश्यकता होगी, इसका विशेष महत्व है। इस दिशा में यदि अधिक अंतर‑राष्ट्रीय सहयोग एवं उच्च‑प्रशिक्षित तकनीशियन को शामिल किया जाये तो उद्योग की क्षितिज व्यापक होगी। आशा है कि इस प्रकार के प्रोजेक्ट्स भारतीय एनीमेशन को वैश्विक मंच पर दृढ़ता से स्थापित करेंगे।

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    Purnima Nath

    सितंबर 21, 2025 AT 07:51

    बहुत ही शानदार फिल्म, भगवान की कहानी को इस तरह से जीवंत देखना दिल को छू गया है! इसने मेरे अंदर एनीमेशन के प्रति प्यार और बढ़ा दिया

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    Rahuk Kumar

    सितंबर 21, 2025 AT 09:31

    समकालीन एनीमेशन का यह एक उदाहरण है

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    Deepak Kumar

    सितंबर 21, 2025 AT 11:11

    यह फिल्म दर्शकों को विविध आयु वर्ग में जोड़ती है, इसलिए अगले भाग में कथा‑विकास को और गहराई देना चाहिए

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    Chaitanya Sharma

    सितंबर 21, 2025 AT 12:51

    महावतार नरसिंह ने भारतीय एनीमेशन के लिये एक नई दिशा स्थापित की है; इसपर आगे भी निरंतर अनुसंधान और निवेश आवश्यक है। इस फिल्म की विज़ुअल तकनीक, विशेषकर लाइटिंग और टेक्सचर एन्हांसमेंट, बजट में रहते हुए उल्लेखनीय स्तर पर पहुँची है। साथ ही, संगीत निर्माण में उपयोग किए गए लोक‑रागों ने दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ दिया। कुल मिलाकर कहा जाए तो यह एक सफल मिश्रण है, जो भविष्य में अधिक व्यापक फ्रैंचाइज़ की नींव रखता है।

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    Riddhi Kalantre

    सितंबर 21, 2025 AT 14:31

    हमारी संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाली ऐसी फिल्में ही राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा देती हैं, इसलिए हमें और अधिक समर्थन देना चाहिए

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    Jyoti Kale

    सितंबर 21, 2025 AT 16:11

    सबसे पहले यह स्पष्ट है कि महावतार नरसिंह ने भारतीय एनीमेशन को एक नयी परिभाषा दी है। इस फिल्म की सफलता का मुख्य कारण सिर्फ़ बड़े बजट या मार्केटिंग नहीं है, बल्कि यह गहरी सांस्कृतिक जड़ें और आधुनिक तकनीकी एकीकरण का परिणाम है। फिल्म में प्रयोग किए गए 3डी मॉडलिंग और लाइटिंग तकनीक को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि टीम ने सीमित संसाधनों में भी उत्कृष्ट परिणाम हासिल किया। दूसरी बात, संगीत की पृष्ठभूमि ने कथा को और अधिक प्रभावशाली बनाया, जिससे दर्शकों की भावनात्मक प्रतिक्रिया तीव्र हुई। तीसरी, फ्रैंचाइज़ रणनीति ने दर्शकों को भविष्य की कड़ियों की अपेक्षा के साथ जोड़ दिया, जिससे वर्ड‑ऑफ़‑माउथ विज्ञापन का प्रभाव बढ़ा। चौथे बिंदु पर, वितरण रणनीति ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी रुचि उत्पन्न की, जिससे आय में विविधता आई। पाँचवाँ पहलू यह है कि इस फिल्म ने युवा एनीमेर्स के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया, जिससे उन्हें बड़े प्रोजेक्ट्स में भाग लेने की प्रेरणा मिली। छठा, तकनीकी टीम ने रेंडर‑फार्म को अनुकूलित किया, जिससे उत्पादन लागत में कमी आई। सातवां, निर्माण प्रक्रिया में मॉड्यूलर एप्रोच अपनाया गया, जिससे भविष्य की कड़ियों में समय की बचत होगी। आठवाँ, दर्शकों की विविध आयु वर्ग को ध्यान में रख कर कहानी को कई लेयर्स में बांटा गया, जिससे सभी को समान रूप से आकर्षित किया गया। नौवां, धार्मिक और मिथकीय तत्वों को सटीकता से प्रस्तुत किया गया, जिससे आध्यात्मिक जुड़ाव बढ़ा। दसवां, समीक्षा में मुख्य आलोचना जहाँ पॉलिश में कुछ जगह कमी कही गई, वहीं यह दर्शाता है कि फिल्म की ताकत उसकी मूल कथा में है। ग्यारहवां, फिल्म ने बॉक्स‑ऑफिस पर तेज़ी से बढ़त बनाई, जिससे यह 2025 की चौथी सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन गई। बारहवां, इस सफलता से भारतीय एनीमेशन स्टूडियो को निवेशकों की नजर में विश्वास बढ़ा। तेरहवां, भविष्य में कई नई फिल्में इस फ्रैंचाइज़ के अंतर्गत बनने की संभावना है, जो दर्शकों को निरंतर जोड़े रखेगी। चौदहवां, इस प्रकार की फिल्में राष्ट्रीय पहचान को सुदृढ़ करती हैं, जबकि वैश्विक मंच पर भारतीय कहानी कहने का स्थान बनाती हैं। पंद्रहवां, अंत में यह कहना उचित रहेगा कि महावतार नरसिंह न केवल एक बॉक्स‑ऑफिस हिट थी, बल्कि भारतीय एनीमेशन के विकास में एक मील का पत्थर है।

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