कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कन्नड़ राज्योत्सव पर राज्यवासियों को दी शुभकामनाएं
नव॰, 2 2024कर्नाटक के लोगों के लिए गर्व का दिन: कन्नड़ राज्योत्सव
हर साल 1 नवंबर को कर्नाटक में कन्नड़ राज्योत्सव की धूम होती है। यह दिन राज्य के लिए खास होता है। इस मौके पर कर्नाटक के लोग अपने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर, भाषाई पहचान और ऐतिहासिक महत्त्व को गर्व से याद करते हैं। आजादी के बाद देश में राज्य पुनर्गठन के दौरान 1956 में गठन हुआ था। इसलिए, प्रत्येक वर्ष इस दिन को राज्य के गठन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राज्यपाल थावरचंद गहलोत का संदेश
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने इस अवसर पर कर्नाटकवासियों को शुभकामनाएं देते हुए राज्य की समृद्ध संस्कृति और भाषाई धरोहर को सहेजने की जरूरत पर जोर दिया। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि कर्नाटक विविधता में एकता का प्रतीक है और यहां की संस्कृतियां और भाषाएं हमें अद्वितीय पहचान देती हैं। राज्यपाल ने कहा कि जनता को कन्नड़ भाषा और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि उनके प्रयास केवल सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण तक सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि इसके प्रसार और पहचान को भी बल देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए और भविष्य की पीढ़ियों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान सिखाना चाहिए।
कन्नड़ राज्योत्सव की महत्ता
कन्नड़ राज्योत्सव का कर्नाटकवासियों के जीवन में एक विशेष स्थान है। यह दिन केवल उत्सव का नहीं बल्कि आत्मसम्मान और गर्व का भी दिन है। यह पर्व एकता, समर्पण और हमारी संस्कृति के प्रति गहरी आस्था को प्रदर्शित करता है। इस दिन स्कूल, कॉलेज, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कला प्रदर्शनों, नाटक और संगीत के माध्यम से कन्नड़ संस्कृति और भाषा को दर्शाया जाता है। इन सब के बीच यह अवसर हमें एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है।
भाषा के संरक्षण की आवश्यकता
इस विशेष पर्व पर, 'कन्नड़ राजभोशी' से लेकर अन्य भाषाओं के प्रचार के प्रति जागरूक रहना भी आवश्यक है। भाषाई संरक्षण के माध्यम से हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूती दे सकते हैं। आज के युग में, जहां दुनिया वैश्वीकरण की ओर अग्रसर है, वहां अपनी भाषा और संस्कृति को सहेजना बहुत जरूरी है। यह पर्व हमें यह शिक्षा देता है कि हमें अपनी गौरवशाली पहचान को नहीं भूलना चाहिए और इसे मजबूत बनाते रहना चाहिए।
कन्नड़ भाषा न केवल कर्नाटक का धरोहर है, बल्कि यह एक अनुकरणीय इतिहास और साहित्य से भी भरपूर है। इस भाषा ने विश्व को कई महान साहित्यकार और विचारकों को दिया है। इससे हमें यह सीखने की जरूरत है कि हमें अपनी भाषा के प्रति गर्वित होना चाहिए और इसकी समृद्धि को आनेवाली पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहिए।
एक निर्बाध उत्सव
कन्नड़ राज्योत्सव का उत्सव स्थानीय स्तर पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विविध रंगों और शैलियों के साथ, यह त्योहार स्थानीय लोगों के जीवन में एक अनोखा जादू बिखेरता है। इस अवसर पर कई स्थानों पर पारंपरिक खेल, संगीत और नृत्य आयोजित किए जाते हैं। ये कार्यक्रम न केवल मनोरंजन का साधन होते हैं, बल्कि ये स्थानीय संस्कृतियों और परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी होते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित सामुदायिक भोज, परेड और सांस्कृतिक शो का मकसद स्थानीय कला को बढ़ावा देना और समग्र सामाजिक संतुलन को मजबूत करना होता है। इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोग इन कठिन समयों में एकजुट होते हैं और यह एक सशक्त समाज के निर्माण में सहायक सिद्ध होता है।
एक सार्थक पर्व
कन्नड़ राज्योत्सव न केवल कर्नाटक के गठन का स्मरण दिलाता है, बल्कि यह एक संदेश भी देता है कि भाषा, संस्कृति और धरोहर हमारे संपत्ति हैं। हमारी यही पहचान है। इस संदेश के साथ यह पर्व हमें यह प्रेरणा देता है कि समाज की विभिन्न धाराओं को मिलकर एकता की पतली डोर में पिरोया जाए और एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का निर्माण किया जाए।
यह पर्व इस बात की भी संजीवनी है कि हमें आने वाले कल के लिए मजबूत आधार तैयार करना चाहिए जिससे की हमारी संस्कृति और भाषा का सम्मान सदियों तक बरकरार रहे। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कर्नाटक के लोग इस आत्मसम्मान और गौरव के पर्व को बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं।