कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कन्नड़ राज्योत्सव पर राज्यवासियों को दी शुभकामनाएं
नव॰, 1 2024
कर्नाटक के लोगों के लिए गर्व का दिन: कन्नड़ राज्योत्सव
हर साल 1 नवंबर को कर्नाटक में कन्नड़ राज्योत्सव की धूम होती है। यह दिन राज्य के लिए खास होता है। इस मौके पर कर्नाटक के लोग अपने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर, भाषाई पहचान और ऐतिहासिक महत्त्व को गर्व से याद करते हैं। आजादी के बाद देश में राज्य पुनर्गठन के दौरान 1956 में गठन हुआ था। इसलिए, प्रत्येक वर्ष इस दिन को राज्य के गठन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राज्यपाल थावरचंद गहलोत का संदेश
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने इस अवसर पर कर्नाटकवासियों को शुभकामनाएं देते हुए राज्य की समृद्ध संस्कृति और भाषाई धरोहर को सहेजने की जरूरत पर जोर दिया। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि कर्नाटक विविधता में एकता का प्रतीक है और यहां की संस्कृतियां और भाषाएं हमें अद्वितीय पहचान देती हैं। राज्यपाल ने कहा कि जनता को कन्नड़ भाषा और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि उनके प्रयास केवल सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण तक सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि इसके प्रसार और पहचान को भी बल देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए और भविष्य की पीढ़ियों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान सिखाना चाहिए।
कन्नड़ राज्योत्सव की महत्ता
कन्नड़ राज्योत्सव का कर्नाटकवासियों के जीवन में एक विशेष स्थान है। यह दिन केवल उत्सव का नहीं बल्कि आत्मसम्मान और गर्व का भी दिन है। यह पर्व एकता, समर्पण और हमारी संस्कृति के प्रति गहरी आस्था को प्रदर्शित करता है। इस दिन स्कूल, कॉलेज, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कला प्रदर्शनों, नाटक और संगीत के माध्यम से कन्नड़ संस्कृति और भाषा को दर्शाया जाता है। इन सब के बीच यह अवसर हमें एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है।
भाषा के संरक्षण की आवश्यकता
इस विशेष पर्व पर, 'कन्नड़ राजभोशी' से लेकर अन्य भाषाओं के प्रचार के प्रति जागरूक रहना भी आवश्यक है। भाषाई संरक्षण के माध्यम से हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूती दे सकते हैं। आज के युग में, जहां दुनिया वैश्वीकरण की ओर अग्रसर है, वहां अपनी भाषा और संस्कृति को सहेजना बहुत जरूरी है। यह पर्व हमें यह शिक्षा देता है कि हमें अपनी गौरवशाली पहचान को नहीं भूलना चाहिए और इसे मजबूत बनाते रहना चाहिए।
कन्नड़ भाषा न केवल कर्नाटक का धरोहर है, बल्कि यह एक अनुकरणीय इतिहास और साहित्य से भी भरपूर है। इस भाषा ने विश्व को कई महान साहित्यकार और विचारकों को दिया है। इससे हमें यह सीखने की जरूरत है कि हमें अपनी भाषा के प्रति गर्वित होना चाहिए और इसकी समृद्धि को आनेवाली पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहिए।
एक निर्बाध उत्सव
कन्नड़ राज्योत्सव का उत्सव स्थानीय स्तर पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विविध रंगों और शैलियों के साथ, यह त्योहार स्थानीय लोगों के जीवन में एक अनोखा जादू बिखेरता है। इस अवसर पर कई स्थानों पर पारंपरिक खेल, संगीत और नृत्य आयोजित किए जाते हैं। ये कार्यक्रम न केवल मनोरंजन का साधन होते हैं, बल्कि ये स्थानीय संस्कृतियों और परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी होते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित सामुदायिक भोज, परेड और सांस्कृतिक शो का मकसद स्थानीय कला को बढ़ावा देना और समग्र सामाजिक संतुलन को मजबूत करना होता है। इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोग इन कठिन समयों में एकजुट होते हैं और यह एक सशक्त समाज के निर्माण में सहायक सिद्ध होता है।
एक सार्थक पर्व
कन्नड़ राज्योत्सव न केवल कर्नाटक के गठन का स्मरण दिलाता है, बल्कि यह एक संदेश भी देता है कि भाषा, संस्कृति और धरोहर हमारे संपत्ति हैं। हमारी यही पहचान है। इस संदेश के साथ यह पर्व हमें यह प्रेरणा देता है कि समाज की विभिन्न धाराओं को मिलकर एकता की पतली डोर में पिरोया जाए और एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का निर्माण किया जाए।
यह पर्व इस बात की भी संजीवनी है कि हमें आने वाले कल के लिए मजबूत आधार तैयार करना चाहिए जिससे की हमारी संस्कृति और भाषा का सम्मान सदियों तक बरकरार रहे। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कर्नाटक के लोग इस आत्मसम्मान और गौरव के पर्व को बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं।

Riddhi Kalantre
नवंबर 1, 2024 AT 23:00राज्यपाल का संदेश कर्नाटकवासियों को अपने गौरवशाली इतिहास को नहीं भूलने की बात करता है, यह वाकई में हमारी राष्ट्रीय पहचान को सुदृढ़ करता है। हमें कन्नड़ भाषा को अपनाना चाहिए और उसे हर पहलू में जीवंत बनाना चाहिए। इस उत्सव को केवल समारोह नहीं, बल्कि एक राजनीतिक अभिव्यक्ति के रूप में देखना चाहिए।
Jyoti Kale
नवंबर 11, 2024 AT 05:13कन्नड़ राज्योत्सव सिर्फ एक भूले-बिसरे दिन नहीं है वह हमारी सांस्कृतिक आत्मा का प्रमाण है
Ratna Az-Zahra
नवंबर 20, 2024 AT 11:27आपकी बात में सच्चाई है लेकिन यह भी याद रखें कि भाषा की सुरक्षा केवल प्रशासनिक आदेशों से नहीं, बल्कि आम लोगों की रोज़मर्रा की बातचीत से ही संभव है।
Nayana Borgohain
नवंबर 29, 2024 AT 17:40कन्नड़ की ध्वनि, उसके शब्दों में छिपी गहराई, एक लय से मन को छू जाता है 😊
Shivangi Mishra
दिसंबर 8, 2024 AT 23:53बहुत अच्छा कि हम सब मिलकर इस भाषा को आगे बढ़ा रहे हैं, इस पर गर्व करना चाहिए! यह हमारी एकजुटता की मिसाल है।
ahmad Suhari hari
दिसंबर 18, 2024 AT 06:07आपके द्वारा उल्लेखित सांस्कृतिक पहलें सराहनीय हैं, परन्तु ऐसे कार्यक्रमों की असली सफलता यह मापी जा सकती है कि लोग उन्हें कितनी बार प्रतिदिन अपनाते हैं।
shobhit lal
दिसंबर 27, 2024 AT 12:20भाई लोगो, कन्नड़ में सिर्फ गीत नहीं, इतिहास भी है, तो चलो इसे फेसबुक स्टेटस में बटोरते हैं और हर जगह शेयर करते हैं।
suji kumar
जनवरी 5, 2025 AT 18:33कन्नड़ राज्योत्सव का महत्व केवल एक तिथिकालीन आयोजन में नहीं, बल्कि यह भारतीय विविधता के व्यापक ताने-बाने को दर्शाता है। यह त्योहार हमारी भाषा के संरक्षण के साथ‑साथ उसके विकास को भी प्रेरित करता है। इस अवसर पर विभिन्न शैक्षिक संस्थानों में किए जाने वाले कार्यशालाएँ युवा पीढ़ी को गहन रूप से जोड़ती हैं। कला और संगीत के माध्यम से स्थानीय विरासत को राष्ट्रीय मंच पर लाने की प्रक्रिया अत्यंत सराहनीय है। प्रत्येक कार्यक्रम, चाहे वह पारम्परिक नृत्य हो या समकालीन नाटक, भाषा की जीवंतता को प्रतिदिन नवीनीकृत करता है। इस प्रकार के सामुदायिक प्रयास सामाजिक एकता को भी सुदृढ़ बनाते हैं। वैविध्य में एकता का संदेश यहाँ स्पष्ट रूप से प्रतिध्वनित होता है। कर्नाटक की विभिन्न भू‑भागों से आए कलाकारों के सहयोग से एक समग्र सांस्कृतिक चित्र बनता है। इस उत्सव की व्यापकता यह सिद्ध करती है कि भाषा के संरक्षण में केवल सरकारी नीतियों की नहीं, बल्कि जन‑जन की भागीदारी की आवश्यकता है। इस प्रकार के आयाम हमें भविष्य में भी अपने भाषा‑संपदा को मजबूत रखने में मदद करेंगे। अंततः, कन्नड़ राज्योत्सव एक ऐसी भावना को जन्म देता है जो राष्ट्रीय गर्व और सांस्कृतिक अभिमान को एक ही दिशा में ले जाता है।
Ajeet Kaur Chadha
जनवरी 15, 2025 AT 00:47ओह, कन्नड़ को शाब्बास! फिर भी कभी‑कभी ऐसे बड़े इवेंट्स को दिखावा नहीं समझना चाहिए।
Vishwas Chaudhary
जनवरी 24, 2025 AT 07:00देशभक्ति का असली मतलब है अपनी भाषा को रोज़मर्रा में इस्तेमाल करना, यही सबसे बड़ा योगदान है
Rahul kumar
फ़रवरी 2, 2025 AT 13:13हर कोई कहता है कन्नड़ सिर्फ प्रदेश की भाषा है, लेकिन वास्तव में यह पूरे राष्ट्र की विविधता का प्रतीक है, इसलिए हमें इसे सिर्फ एक स्थानीय पहलू नहीं समझना चाहिए
indra adhi teknik
फ़रवरी 11, 2025 AT 19:27सही कहा गया है कि भाषा की सुरक्षा के लिए शिक्षा सबसे असरदार तरीका है; स्कूल में कन्नड़ साहित्य को पाठ्यक्रम में शामिल करना एक अच्छी पहल है।
Kishan Kishan
फ़रवरी 21, 2025 AT 01:40यह पहल वास्तव में सराहनीय है; ऐसे इवेंट्स से स्थानीय कलाकारों को मंच मिलता है, और जनता को अपनी जड़ों से जोड़ता है।
richa dhawan
मार्च 2, 2025 AT 07:53कभी‑कभी लगता है कि ये सर्वेलेन्स के नए ढंग की तरह है।