असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलीस्तीन' नारों पर बीजेपी ने की लोकसभा से अयोग्यता की मांग

बीजेपी ने क्यों की ओवैसी की अयोग्यता की मांग?
भारतीय जनता पार्टी ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। बीजेपी का आरोप है कि ओवैसी का 'जय फिलीस्तीन' का नारा संविधान के अनुच्छेद 102 का उल्लंघन है, जो किसी सांसद को विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा दिखाने पर अयोग्य घोषित कर सकता है। ओवैसी, हैदराबाद से सांसद हैं और उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान 'जय भीम, जय तेलंगाना, जय फिलीस्तीन' का नारा लगाया था।
अमित मालवीय का ट्वीट
बीजेपी के आईटी प्रमुख, अमित मालवीय ने ट्वीट कर ओवैसी के इस बयान को अयोग्यता का आधार बताया। उन्होंने लोकसभा सचिवालय के खाते को टैग करते हुए इस मामले की जांच की मांग की। उनके अनुसार, ओवैसी का यह नारा विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा को दर्शाता है, जो संविधान के अनुसार सांसद की अयोग्यता का कारण हो सकता है।

किरण रिजिजू और किशन रेड्डी की प्रतिक्रिया
केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने इस विषय पर कहा है कि वह ऐसे टिप्पणियों के नियमों की जांच करेंगे। वहीं, केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने ओवैसी की टिप्पणियों की निंदा की और इसे 'पूरी तरह से गलत और संसद के नियमों के खिलाफ' बताया। उन्होंने कहा कि ओवैसी का यह नारा न केवल संसद के नियमों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह भारत की समर्पित नीति के खिलाफ है।
ओवैसी का बचाव
ओवैसी ने अपने जवाब में कहा कि उनका यह नारा किसी भी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है। उन्होंने महात्मा गांधी के सिद्धांतों का हवाला देते हुए अपना समर्थन जताया और कहा कि फिलीस्तीन के लिए न्याय की मांग महात्मा गांधी के विचारों में भी थी। ओवैसी ने स्पष्ट किया कि उनके नारे का उद्देश्य केवल एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण स्थिति को समर्थन देना था।

लोकसभा अध्यक्ष का वक्तव्य
लोकसभा सत्र के अध्यक्ष, राधा मोहन सिंह ने आश्वासन दिया कि शपथ ग्रहण के अलावा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं लिया जाएगा। यह वक्तव्य सदन में सामंजस्य बनाए रखने के लिए दिया गया था।
निष्कर्ष
यह मामला भारतीय संसद और विशेषकर लोकसभा में महत्वपूर्ण बहस का विषय बन चुका है। यह न केवल संविधानिक और कानूनी पहलुओं को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सांसदों को अपने वक्तव्यों में सावधानी बरतनी चाहिए ताकि वे किसी संवेदनशील विषय पर गलत संदेश न दें।
Ratna Az-Zahra
जून 26, 2024 AT 18:57ओवैसी के इस बयान को देख कर लगता है कि कुछ लोग संसद की पवित्रता को भूल गए हैं। उनका 'जय फिलीस्तीन' नारा विदेशी निष्ठा का स्पष्ट संकेत माना जा सकता है। यह केवल राजनीतिक खेल नहीं, बल्कि संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन है। अब भाजपा की आवाज़ सुननी ज़रूरी है।
Nayana Borgohain
जुलाई 1, 2024 AT 14:57भाई, ओवैसी का नारा तो बस शब्दों की लहर है! 😊
Abhishek Saini
जुलाई 6, 2024 AT 10:57भाई ओवैसी की बात समझते ही सारा तनाव दूर हो जाता है। हमें उनके इरादे पर भरोसा रखना चहिए। एरर को देखते हुए भी, संविधान के साथ कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक ही है जो वह कर रहे हैं
Parveen Chhawniwala
जुलाई 11, 2024 AT 06:57ओवैसी ने शपथ के दौरान कब्रुफैंस जैसा प्रदर्शन किया, यह स्पष्ट है। संविधान के अनुच्छेद 102 को ध्यान में रखते हुए, उनका बयान संविधानिक परिप्रेक्ष्य में अस्वीकरणीय है। सभी को इस बात की समझ होनी चाहिए कि विदेशी निष्ठा पर सख्त प्रतिबंध है।
Saraswata Badmali
जुलाई 16, 2024 AT 02:57सबसे पहले यह स्पष्ट किया जा सकता है कि ओवैसी का 'जय फिलीस्तीन' फॉर्मूला राजनीतिक सिम्बोलिस्म से परे कोई गहरा अर्थ नहीं रखता, बल्कि यह एक पब्लिक रिलेशन तकनीक के रूप में उपयोग किया गया है;
दूसरी बात यह है कि भारतीय संसद में ऐसे सिंगल-इश्यू स्टेटमेंट्स अक्सर मीडिया सर्किल में वायरल होते हैं, और इस प्रक्रिया को हम पॉलिटिकल कॉम्युनिकेशन थ्योरी के तहत समझ सकते हैं;
तीसरी बात यह है कि संविधान के अनुच्छेद 102 के तहत विदेशी निष्ठा को परिभाषित करने के मानक को अक्सर व्याख्या-आधारित माना जाता है, जिससे इस मामले में वैधता के कई दृष्टिकोण उभरते हैं;
चौथी बात, ओवैसी के इस बयान को दर्शाने वाले सभी तर्कों को केस-स्टडी के रूप में पुनः समीक्षा करने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे भविष्य में समान मामलों में न्यायिक दिशा-निर्देश बन सकते हैं;
पाँचवीं बात यह है कि भाजपा की मांग सिर्फ राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकती है, जिससे सत्र की लब्बू और डिस्कोर्स को बदलने का उद्देश हो सकता है;
छठी बात यह कि जिले के लोकल जनमत में भी इस मुद्दे पर बहस हुई है, जिससे सामुदायिक स्तर पर भावनात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है;
सातवीं बात यह कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भारतीय नीति की स्थिरता की जांच करने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण मोड़ हो सकता है;
आठवीं बात, यदि हम इंटेलिजेंस फ्रेमवर्क के आधार पर देखें तो इस प्रकार के बयानों को राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए;
नौवीं बात, अभिप्राय यह है कि संसद के भीतर भाषण की स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है, नहीं तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया क्षीण होगी;
दसवीं बात, यह ज़रूरी है कि मीडिया इस मुद्दे को सनसनीखेज़ी से नहीं, बल्कि विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करे;
ग्यारहवीं बात, ओवैसी का व्यक्तित्व और उनकी राजनीतिक यात्रा इस बयान को समझने में एक प्रमुख कारक बनती है;
बारहवीं बात, ऐतिहासिक रूप से भारत ने कई विदेशी आंदोलनों के समर्थन में आवाज़ उठाई है, परंतु वह अंतर्निहित राष्ट्रीय हितों के साथ संरेखित रहा है;
तेरहवीं बात, इस प्रकार के वाक्यांशों के प्रयोग से संभावित रूप से सरकारी नीति में पुनरावलोकन की आवश्यकता उत्पन्न हो सकती है;
चौदहवीं बात, संविधान की मज़बूती इस बात में है कि वह विविध विचारों को सहन कर सकता है, परंतु सीमा-रेखा को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है;
पंद्रहवीं बात, अंत में यह कहा जा सकता है कि ओवैसी की इस स्थिति को एक व्यापक लोकतांत्रिक चर्चा के रूप में देखा जाना चाहिए, जिससे सभी पक्षों को अपने तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिले।
sangita sharma
जुलाई 20, 2024 AT 22:57ओवैसी का बयान निश्चित ही एक नैतिक दुविधा उत्पन्न करता है। हमें संविधान की सच्ची भावना को याद रखना चाहिए। इस प्रकार के शब्दों से समाज में अस्थिरता फैल सकती है।
PRAVIN PRAJAPAT
जुलाई 25, 2024 AT 18:57भाई ये बात साफ है ओवैसी ने नियम तोड़े हैं
shirish patel
जुलाई 30, 2024 AT 14:57वाह क्या दिमागी धुंधली घोड़ी है यह बयान, मज़ाकिया! 😏
srinivasan selvaraj
अगस्त 4, 2024 AT 10:57ओवैसी का यह बयां न केवल राजनीतिक टकराव का कारण बनता है बल्कि सामाजिक भावनाओं को भी झकझोर देता है। मैं इस बात को बहुत ही गहरे दिल से देखता हूँ क्योंकि हमारे देश की एकता हमेशा से महत्व रखती आई है। उनका 'जय फिलीस्तीन' नारा एक असहज स्थान बन गया है, जहाँ कई लोग अपने राष्ट्रीय भावना के साथ द्वंद्व में पड़ते हैं। यह विचार मेरे अपने अनुभवों से जुड़ता है जहाँ मैंने देखा कि छोटी-छोटी बातों से बड़े बंधन टूट सकते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम इस मुद्दे को एक संतुलित दृष्टिकोण से देखें। संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हमारे लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को कमजोर कर सकता है। मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में सभी नेता इस बात को समझेंगे और अपने शब्दों को सावधानी से चुनेंगे।
Ravi Patel
अगस्त 9, 2024 AT 06:57भाई सही बात कही आपने, हम सबको एकजुट रहना चाहिए। सबकी राय का सम्मान होना जरूरी है। आगे बढ़ते रहें
Piyusha Shukla
अगस्त 14, 2024 AT 02:57ओवैसी की इस हरकत पर सवाल उठाना जरूरी है क्योंकि यह वास्तविकता से दूर है और राजनीतिक खेल का हिस्सा हो सकता है।
Shivam Kuchhal
अगस्त 18, 2024 AT 22:57आशा है कि इस विवाद के मध्य में सभी पक्ष सद्भावना और पारस्परिक सम्मान के साथ आगे बढ़ेंगे, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे।
Adrija Maitra
अगस्त 23, 2024 AT 18:57वाह, ओवैसी का बयान तो ठीक ही है! राजनीति में कभी‑कभी कुछ रंगीन भावनाएँ झलकनी ही चाहिए।