असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलीस्तीन' नारों पर बीजेपी ने की लोकसभा से अयोग्यता की मांग

असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलीस्तीन' नारों पर बीजेपी ने की लोकसभा से अयोग्यता की मांग जून, 26 2024

बीजेपी ने क्यों की ओवैसी की अयोग्यता की मांग?

भारतीय जनता पार्टी ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। बीजेपी का आरोप है कि ओवैसी का 'जय फिलीस्तीन' का नारा संविधान के अनुच्छेद 102 का उल्लंघन है, जो किसी सांसद को विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा दिखाने पर अयोग्य घोषित कर सकता है। ओवैसी, हैदराबाद से सांसद हैं और उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान 'जय भीम, जय तेलंगाना, जय फिलीस्तीन' का नारा लगाया था।

अमित मालवीय का ट्वीट

बीजेपी के आईटी प्रमुख, अमित मालवीय ने ट्वीट कर ओवैसी के इस बयान को अयोग्यता का आधार बताया। उन्होंने लोकसभा सचिवालय के खाते को टैग करते हुए इस मामले की जांच की मांग की। उनके अनुसार, ओवैसी का यह नारा विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा को दर्शाता है, जो संविधान के अनुसार सांसद की अयोग्यता का कारण हो सकता है।

किरण रिजिजू और किशन रेड्डी की प्रतिक्रिया

किरण रिजिजू और किशन रेड्डी की प्रतिक्रिया

केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने इस विषय पर कहा है कि वह ऐसे टिप्पणियों के नियमों की जांच करेंगे। वहीं, केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने ओवैसी की टिप्पणियों की निंदा की और इसे 'पूरी तरह से गलत और संसद के नियमों के खिलाफ' बताया। उन्होंने कहा कि ओवैसी का यह नारा न केवल संसद के नियमों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह भारत की समर्पित नीति के खिलाफ है।

ओवैसी का बचाव

ओवैसी ने अपने जवाब में कहा कि उनका यह नारा किसी भी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है। उन्होंने महात्मा गांधी के सिद्धांतों का हवाला देते हुए अपना समर्थन जताया और कहा कि फिलीस्तीन के लिए न्याय की मांग महात्मा गांधी के विचारों में भी थी। ओवैसी ने स्पष्ट किया कि उनके नारे का उद्देश्य केवल एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण स्थिति को समर्थन देना था।

लोकसभा अध्यक्ष का वक्तव्य

लोकसभा अध्यक्ष का वक्तव्य

लोकसभा सत्र के अध्यक्ष, राधा मोहन सिंह ने आश्वासन दिया कि शपथ ग्रहण के अलावा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं लिया जाएगा। यह वक्तव्य सदन में सामंजस्य बनाए रखने के लिए दिया गया था।

निष्कर्ष

यह मामला भारतीय संसद और विशेषकर लोकसभा में महत्वपूर्ण बहस का विषय बन चुका है। यह न केवल संविधानिक और कानूनी पहलुओं को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सांसदों को अपने वक्तव्यों में सावधानी बरतनी चाहिए ताकि वे किसी संवेदनशील विषय पर गलत संदेश न दें।