अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
नव॰, 9 2024सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के उस फैसले को पलट दिया है, जिसके तहत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को उसका अल्पसंख्यक दर्जा नहीं दिया गया था। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात-जजों की बेंच द्वारा लिया गया। इस निर्णय में चार जजों का समर्थन प्राप्त था, जबकि तीन जजों ने असहमति जताई। इस फैसले के बाद से AMU की अल्पसंख्यक स्थिति एक बार फिर से चर्चा में आ गई है।
फैसले का समर्थन और विरोध
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जे.बी. पारदीवाला, और मनोज मिश्रा ने बहुमत से इस फैसले को स्वीकार किया। वहीं, न्यायमूर्ति सुर्य कांत, दीपनकर दत्ता, और सतीश चंद्र शर्मा ने इस फैसले का विरोध किया। इन तीनों न्यायाधीशों ने कहा कि AMU का अल्पसंख्यक दर्जा होना उचित नहीं है। यह असहमति भारतीय न्यायपालिका के विभिन्न दृष्टिकोणों को दर्शाती है, जो देश के लोकतंत्र की विविधता का उदाहरण है।
AMU का कानूनी और ऐतिहासिक दृष्टिकोण
AMU को 1920 के अधिनियम के तहत एक मुस्लिम संस्था के रूप में स्थापित किया गया था। इसके बावजूद समय-समय पर इसके अल्पसंख्यक दर्जे को चुनौती दी गई है। 1981 में AMU अधिनियम में किए गए संशोधन को कोर्ट ने यह कहकर नहीं माना कि वह 1951 के पूर्व की स्थिति को पूरी तरह बहाल नहीं करता। कोर्ट ने यह भी कहा है कि AMU को उसका अल्पसंख्यक दर्जा कानूनी और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से आंका जाना चाहिए।
राजनीतिक प्रभाव और बहस
यह फैसला भारतीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे सकता है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार ने यह तर्क दिया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में AMU सरकार के आर्थिक सहायता प्राप्त करता है, इसलिए यह अल्पसंख्यक दर्जे के लिए योग्य नहीं है। वहीं, विपक्षी गठबंधन, विशेषकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA), ने AMU के मूल स्वरूप के आधार पर इसका समर्थन किया है।
न्यायपालिका का आगे का रुख
इस केस को सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य बेंच को वापस भेज दिया है, जिससे इसकी अंतिम स्थिति पर विचार किया जा सके। विधिक विशेषज्ञों का मानना है कि इससे और सुनवाई हो सकती हैं, और अन्य संगठनों पर इसके व्यापक प्रभाव भी पड़ सकते हैं। AMU के अल्पसंख्यक दर्जे की भविष्य की स्थिति अभी भी अनिश्चित है, लेकिन इसका निर्णय भारतीय संवैधानिक और विधिक प्रणाली के लिए एक निर्णायक मोड़ हो सकता है।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल का मानना
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत AMU को अल्पसंख्यक संस्था के रूप में स्वयं शासित होने का अधिकार है। यह मामला वर्षों से विवादास्पद रहा है, और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी इसके भविष्य की अस्पष्टता बनी हुई है। कोर्ट के इस फैसले के बाद शायद इस मामले में और सुनवाई की जाएगी, जो AMU और उसी जैसे अन्य संस्थानों के लिए नज़ीर साबित होगा।